मेरे बिना तुम प्रभु
प्रश्न 1. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में रेनर मारिया रिल्के ने एक दुर्लभ साखी पेश की है । बिना भक्त भगवान भी एकाकी और निरूपाय है । उसकी सत्ता भक्त पर ही निर्भर करती है । इसलिए कवि कहता है कि जब मेरा अस्तित्व न रहेगा , प्रभु तब तुम क्या करोगे । यानी जब तुम्हारा भक्त कोई भी नहीं होगा तब तुम क्या करोगे तुम पर जल अर्पित करने वाला पात्र में बनकर टूट जाऊँगा ब तुम क्या करोगे । यहाँ कवि अपने आप को जलपात्र के रूप में प्रस्तुत किया है जिसकी मदिरा स्वादहीन होने की बात कवि कहते हैं ।
प्रश्न 2. आशय स्पष्ट कीजिए ” मैं तुम्हारा वेश हूँ , तुम्हारी वृत्ति हूँ मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?
” उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहता है कि बिना भक्त के तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है । ( अब मनुष्य नहीं होंगे तब तुम भी नहीं रहोगे । अतः जब मैं हूँ तब तुम्हारा वेश है तुम्हारी कृत्ति इन लोगों को लेकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे |
प्रश्न 3. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा और क्यों ?
उत्तर- यहाँ शानदार लबादा ( चोंगा ) प्रभु का गिर जाएगा । क्योंकि जब हम नहीं रहेंगे तब म्हारी कृपा दृष्टि जो मेरे कपाल पर हैं वह मिट जाएगीं और तुम निराश होकर उसे खोजोगे । ब्रस इच्छा मैं तुम्हें देता हूँ । इसलिए मेरे बिना प्रभु तुम्हारा कोई लबादा नहीं होगा ।
प्रश्न 4. कवि किसको कैसा सुख देता था ?
उत्तर- कवि प्रभु को लबादा का सुख देता है । जिसे प्रभु की कृपा दृष्टि जब हमारे कपोलों नर्म शय्या पर विश्राम करती थी । अब हमारे न होने पर तुम्हारी कृपा दृष्टि निराधार है । तुम सुख को खोजोगे । जो तुम मुझे दिया करते थे । अतः मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है ।
प्रश्न 5. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर कवि इस बात की आशंका है कि मेरे बिना या मनुष्य के बिना ये प्रभु क्या करेंगे । 11 मैं नहीं रहूँगा तब प्रभु की वेश , वृत्ति तथा प्रभु की महिमा का कोई महत्व नहीं रह जाता । प्रभु की चोगा , कृपादृष्ट का कोई अर्थ नहीं रह जाता । भक्त के बिना ईश्वर का कोई महत्व अस्तित्व नहीं है ।
प्रश्न 6. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है ? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर – यह कविता एक भक्त के द्वारा प्रभु को संबोधित की जा रही है । यहाँ भक्त अपना महत्व ईश्वर या प्रभु को बताने की कोशिश कर रहा है । वह कहता है कि मनुष्य के बिना या भक्त के बिना प्रभु का कोई महत्व नहीं होता । इनकी महत्ता लोगों की श्रद्धा पर ही आश्रित है । इस कविता में एक प्रकार से प्रभु की महत्ता की बात न कर कवि अपनी या भक्त की महत्ता की बात करता है । जिससे हम अपनी भक्ति के महत्त्व को समझते हैं ।
प्रश्न 7. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव एक दूसरे पर निर्भर करते हैं । मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा इसके जीवित दुनिया तक ही सीमित रहती है जबकि महिमा आनेवाले प्रत्येक समय में कायम रहती है । अगर मनुष्य इस लोक में न हो तो प्रभु का होना व्यर्थ मनुष्य से ही प्रभु का अस्तित्व है । हम हैं तब तक प्रभु की अर्चना , गुणगाण तथा उनकी प्रशंसा करते हैं । हमारे नहीं होने पर इनका देश , वेश , वृत्ति , लबादा आदि खत्म हो जाएगा । इसलिए मनुष्य पर प्रभु आश्रित है ।
प्रश्न 8 .कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – रेनर मारिया रिल्के जी कहते हैं कि प्रभु मेरे बिना तुम अपने घर से निर्वासित रूप में हो , एक बिना अर्चना के खड़े हों । मैं तुम्हारा खराऊ हूँ । अगर मैं न रहूँ तो तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाए । तुम लहूलुहान होकर हर जगह निर्वासित रूप में भटकोगे । तुम्हारी कृपादृष्टि हमारे नम्र शय्या पर विश्राम करती है । हमारे न होने पर सब व्यर्थ है । मैं तुम्हारा जलपात्र हूँ , मंदिरा हूँ जो मेरे बिना व्यर्थ है ।