अति शुधो सनेह को मारग है

अति सूधो सनेह जो मारग है मो आँसू वानिहिं लै बरसौ

प्रश्न 1. कवि प्रेममार्ग को ‘ अति सूधो ‘ क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषताक्या है ?

 उत्तर- प्रसिद्ध रीतिमुक्त कवि घनानंद इस सवैये में प्रेम मार्ग का परिचय देते हैं , प्रेम के मार्ग की विशेषताएँ और इस पर चलने वाले पथिक की पात्रता का परिचय देते हुए घनानंद कहते हैं स्नेही का मार्ग अत्यंत सीधा है । क्योंकि इस मार्ग पर चलने के लिए तनिक भी सयानेपन या बांकपन की आवश्यकता नहीं होती है । इस रास्ते पर वही चल सकता है जो सच्चा है , जिसे अपने होने का बोझ खो दिया हो । अर्थात् जिसमें घमंड नहीं हो और जो प्रेम के लिए सर्वस्व समर्पण कर सके ।

प्रश्न 2. ‘ मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं ‘ से कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर यहाँ अपने प्रिय सुजान को संबोधित करते हुए घनानंद कहते हैं कि उनके हृदय में सिवाए उसके किसी और की छवि नहीं है । पर उनके प्रिय ने भला यह कौन सा पाठ पढ़ है कि उसने घनानंद का मन तो ले लिया पा सुजान ने अपनी छटा नहीं दिखाई । इस सुजान ने घनानंद का सर्वस्व ले लिया पर दिया कुछ भी नहीं ।

प्रश्न 3. द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों ?

 उत्तर- द्वितीय छंद घन से संबोधित है क्योंकि कवि बादल को अपने प्रिय के रूप में देखकर उससे गुहार करता है कि घन तुम दूसरों के लिए जो अपना देह धारण करते हो कभी मेरी यथार्थ , मेरी विकट स्थिति भी देखकर अपने जलराशि को अमृत का रूप देकर अपनी सज्जनता दिखाओ जिससे मेरी पीड़ा कुछ कम हो सके ।

प्रश्न 4.परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए ।

 उत्तर- परहित के लिए घन ( बादल ) देह रूप धारण करता है । कवि यहाँ अपनी पीड़ा को कम करने के लिए बादल से आग्रह करता है । बादल अपनी जलराशि को अमृत का रूप देकर तथा अपनी सज्जनता दिखाकर कवि अपनी मदद के लिए घन से गुहार लगाता है ।

प्रश्न 5. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुँचाना चाहता है और क्यों ?

 उत्तर- रीतिमुक्त धारा के कवि घनानंद अपने आंसुओं को बादल के द्वारा अपने पीड़ा को बटाने हेतु सुजान के आंगन में वर्षा कराना चाहता है ताकि सुजान को यह अहसास हो सके कि मेरी दशा उसके प्रेम में किस प्रकार व्याकुल है । उसे मेरी तनिक भी पीड़ा का अहसास नहीं है । अतः घन के द्वारा कवि अपनी पीड़ा को बोध कराने के लिए बाध्य करता है ।

प्रश्न 6. व्याख्या करें –

( क ) यहाँ एक तैं दूसरी आँक नहीं

( ख ) कछू मेरियौ पीर हिएँ परसौ

उत्तर- ( क ) प्रेम के पीर कवि घनानंद सुजान नर्तकी के प्रेम में डूबे हैं । ये सुजान से अलग होकर भी उसके प्रेम में लीन रहते हैं । अतः यहाँ प्रिय सुजान को संबोधित करते हुए घनानंद कहते हैं कि उनके हृदय में सिवाए सुजान के किसी और की छवि नहीं है ।

  ( ख ) रीतिमुक्त धारा के कवि घनानंद यहाँ मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह – वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यंत कलात्मक रूप से अभिव्यक्त करते हैं । वे कहते हैं हे आनंद के घन तुम तो जीवन देने वाले हो , कुछ मेरे हृदय की पीड़ा भी समझो । कभी उस अविश्वासी सुजान के आंगन में जाकर मेरे आंसुओं की वर्षा कर आओ । जिससे मेरी दशा का कुछ बोध हो सके ।

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