स्वदेशी

स्वदेशी

प्रश्न 1. कविता के शीर्ष की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- अंग्रेजों के शासनकाल में भारत के लोग अपना आत्मविश्वास और आत्मगौल पूर्व तरह खो चुके थे । अंग्रेजों के तौर – तरीके और रहन – सहन को अपनाकर लोग अपने ही देश के अन्य लोगों से भिन्न दिखना चाहते थे । परिणामस्वरूप वे स्वदेशी वस्तुओं का कर थे । कवि ऐसे पथभ्रष्ट लोगों को इस कविता के माध्यम से संदेश देकर स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल की ओर प्रवृत करना चाहता था , उन्हें अपनी संस्कृति और रहन – सहन के प्रति जागरूक करन तथा उनमें आत्मगौरव का भाव जगाना कविता का मूल उद्देश्य है । इस दृष्टि से कविता यह शीर्षक अत्यंत सार्थक और उपयुक्त है ।

प्रश्न 2 , कवि को भारत में भारतीयता क्यों नहीं दिखाई पड़ती ?

 उत्तर – कवि को भारत में भारतीयता इसलिए नहीं दिखाई पड़ती क्योंकि अंग्रेजी राज प्रभाव से भारतीय जनता पूरी तरह से जकड़ चुकी है । सभी लोग विदेशी वस्तुओं पर आ हो गए हैं । यही ढंग और गति सब ओर दिखाई पड़ती है ।

प्रश्न 3. कवि समाज के किस वर्ग की आलोचना करता है और क्यों ?

 उत्तर – प्रेमघन यहाँ उन भारतीय वर्गों की आलोचना करते हैं जो भारतीय न होकर अपने एक आप को हिंदू या मुस्लिम या ईसाई वर्ग में बांधते हैं । इसके साथ ही वे लोग जो विदेशी शिक्षको के कुप्रभावों से लैस होकर विदेशी बुद्धि के हो गए हैं , जिन्हें अपने देश की नहीं बल्कि प का चाल – चलन ही इन्हें अत्यंत पसंद आता है । इन लोगों को अब विदेशी ठाठ अच्छी लगाव है । सपने में ही इन कुप्रभावित भारतीयों को सपने में भी भारतीयता होने का लोप हो गया ।

प्रश्न 4.  कवि नगर , बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या टिप्पणी करता है ?

उत्तर- यहाँ प्रेमघनजी ने भारतीय नगर , बाजार और अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते कहते हैं कि सारे नगर में अब अंग्रेजी द्वारा दी गई भाषा का प्रयोग हो रहा है । लोग अब अ हिन्दुस्तानी भाषा को भूल चुके हैं । अंग्रेजी बोलने में वे अपनी शान समझते हैं । वहीं बाजार विदेशी वस्तुओं की धूम सी मची है । लोग अंग्रेजी वाहन , वस्त्र , वेष , रीतियाँ , नीतियां , घर ल वस्तुएँ बड़े ही प्रेम से खरीद रहे हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था बिल्कुल ही निर्धन हो चुकी और अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ । अतः यहाँ कवि कहते हैं कि देश अब विदेश हो रहा । भारतीयता अब सपने में भी नहीं दिखाई देती है ।

 प्रश्न 5. नेताओं के बारे में कवि को क्या राय है ?

 उत्तर- प्रेमघनजी नेताओं पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि यहाँ के नेता ढीलेपन अयोग्यता प्रवृति के हैं । इन्हें अपने देह की धोती नहीं संभलती भला वे किस प्रकार से देश संभालेंगे । ये लोग देश का प्रबंध कर सकेंगे , यह तो खाम ख्याली है । यानी इन नेताओं को की चिन्ता नहीं करनी चाहिए । ये लोग पूर्ण रूप से अंग्रेजी हुकूमत के पक्षधर हैं ।

प्रश्न 6. कवि ने ‘ डफाली ‘ किसे कहा है और क्यों ?

उत्तर – कवि ने डफाली उन लोगों को कहा जो अंग्रेजों की चाटुकारिता में लगे रहते उन लोगों का स्वाभिमान खो चुका है । उनमें दास वृत्ति की इच्छा पनप चुकी है । ये लोग हमें खुशामद में लगे रहते हैं तथा अपनी काम बनाने के लिए झूठी प्रशंसा करते रहते हैं । अतः देख कर लगता है ये झूठ का ढोल बजाने वाले हैं ।

 प्रश्न 7. व्याख्या करें

 ( क ) मनुज भारती देखि कोउ , सकत नहीं पहिचान ।

( ख ) अंग्रेजी रुचि , गृह , सकल बस्तु देस विपरीत ।

उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि देश विभिन्न धर्मों में बंट चुके हैं । भी भारतीय मनुष्यों को देखकर कोई नहीं पहचान सकता है । ये भारतीय न होकर हिंदू है ,

मुस्लिम है या ईसाई । ये सभी अंग्रेजी स्वरूप , भाषा वेष भूषा वस्तुओं के आदि हो गए हैं । तथाअपनी गुलामी को चाटुकारिता के रूप में प्रस्तुत करते हैं |  

(ख ) प्रेमघन इस पंक्ति में सभी प्रकार की अंग्रेजी वस्तु को विपरीत बताते हैं । अंग्रेजों ने भारतीयों पर राज करने के लिए कई तरह के चाल चले हैं । वे यहाँ के बाजार व्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से जकड़ लिया । इसलिए अंग्रेजी वाहन , वस्त्र , वेष रीतियाँ लोग अंग्रेजों की सीख रहे हैं जिसे लोग बड़े प्रेम से इसे स्वीकार करते नजर आते हैं । ” है ? स्पष्ट करें ।

प्रश्न 8. आपके मत से स्वदेशी की भावना किस दोहे में सबसे अधिक प्रभावशाली है |स्पष्ट करें ?

उत्तर- हमारे मत के अनुसार स्वदेशी की भावना सभी दोहे में प्रभावशाली है । फिर भी मुझे ” मनुज भारती देखी कोऊ , सकत नहीं पहिचान ।  मुसल्मान , हिन्दु किधौं , के हैं ये क्रिस्तान ॥ ” ये पंक्ति प्रभावशाली लगी है ।  क्योंकि इस पंक्ति के जरिए कवि ने यह बताया है कि भारत किस प्रकार से अपनी सामाजिक , सांस्कृतिक पहचान को खो चुका है । लोग अपनी पहचान को एक रंगे हुए रूप प्रदर्शित करते हैं । अतः इस पंक्ति में विभिन्न धर्मों में बंट चुके भारतीयों की दशा पर टिप्पणी है । कवि कहते हैं कि कहीं भी भारतीय मनुष्यों को देखकर कोई नहीं पहचान पकता । ये भारतीय न होकर हिन्दू है , या मुस्लिम है , या ईसाई है । इस प्रकार से उन्होंने धार्मिक भावनाओं को उभारा , विदेशी शिक्षा के जरिए भारतीयों को मानसिक रूप से गुलाम बना दिया है ।

 

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