हिरोशिमा
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है ?
उत्तर – अज्ञेय जी ने अपने कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज अणुबम को कहा है । अतः वे हिरोशिमा की तबाही की कहानी कहते हैं , हिरोशिमा पर अणुबम के गिरने की तुलना वे सूरज निकलने से करते हुए कहते हैं – एक दिन अचानक सूरज निकला , पर वह सूरज क्षितिज पर नहीं नगर के चौक पर उगा था । सूरज से धूप बरसने लगी । पर यह धूप अंतरिक्ष से नहीं है । मिट्टी से निकली । मिट्टी फट कर निकली ।
प्रश्न 2. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें ।
उत्तर- जब हिरोशिमा पर अणुबम फटा तो इसके द्वारा मची तबाही में सभी मानव को छायाएँ विखड़ गई थी । लोग मारे गए लोगों के चिथड़े उड़ गए । मानव शरीर का एवं नगर वस्सी को एक रूप छाया अलग – अलग हो गई । लाखों लोग मारे गए । अतः यहाँ कविता में अज्ञेय किरण हर दिशा में पड़ी । यह सूरज जो नगर के चौक पर उगा था वह पूरब दिशा में नहीं उगा के पहिए टूट कर चारों दिशाओं में बिखड़ गए हों । था । वह सूरज की किरणें अचानक नगर के बीचों बीच बरसने लगी थी । मानों सूरज के रथ के पहिये टूट कर चारों दिशाओं में बिगड़ गए हों|
प्रश्न 3. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर- अज्ञेयजी यह बताना चाहते हैं कि यह जो सूर्य निकला था वह काल – सूर्य था । इस सूर्य का उदय और अस्त – सुबह – शाम के समय पर नहीं था । यह तो क्षण भर का उदय – अस्त था । यह एक क्षण का प्रज्वलन था । इस एक क्षण की प्रज्वलन ने लाखों लोगों को सोख लिया । यह प्रज्वलन जीवन देने वाला नहीं बल्कि जान लेने वाला था । यहाँ इसका आशय है कि अणुबम से चिंगाड़ियां निकलती है या आग की लपटें निकलती है वे ही लोगों को लील गया है । इसकी किरणों में झुलस गया है मर गया है ।
प्रश्न 4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ?
उत्तर – जब हिरोशिमा पर अणुबम गिरा तब जो जीवन ( मनुष्य ) जहाँ था , उसे वहीं समाप्त कर दिया । यह सुबह का सूरज नहीं था । दोपहरी का तीखापन इसमें था । यह सूरज जब बरसा तो मानव मिटा नहीं बल्कि वह उसमें ऐसी किरणों की लपटों में जलकर भाप हो गया । इसलिए मानव को छाया का रूप लेने का भी अवसर नहीं मिला । नगर के पत्थर तक झुलस गए और इन्हीं पत्थरों पर सड़कों की पक्की फर्श पर छाया बिखड़ गई ।
प्रश्न 5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर- यह सूरज किसी और का नहीं मानव का ही रचा हुआ था । कविता में अज्ञेय बार – बार मानव का ही उल्लेख करते हैं । मानव उसे कहेंगे जिसने विवेक और ज्ञान अर्जित कर लिया हो । पर हिरोशिमा की यह घटना मनुष्य के मानव होने का प्रमाण कहीं से नहीं दे रही थी । मानव द्वारा बनाए गए इस सूरज ने मानव को ही सोख लिया । उसका जीवन समाप्त कर दिया । हिरोशिमा के पत्थरों पर यह कहानी लिखी हुई है । उन पत्थरों पर बिखड़ी हुई जली हुई छायाएँ मानव के इस सूरज की सारणी ( गवाह ) है ।
प्रश्न 6. व्याख्या करें
( क ) ‘ एक दिन सहसा / सूरज निकला
( ख ) ‘ काल – सूर्य के रथ के / पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में ’
( ग ) ‘ मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बना कर सोख गया ‘
उत्तर- ( क ) यहाँ प्रस्तुत कविता में अज्ञेय जी ने हिरोशिमा पर हुए द्वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान अणुबम का प्रयोग एक सूरज के रूप में प्रयोग किया है । जिसकी किरणों से लाखों मानव भाप बनकर उड़ गए । चारों तरफ तबाही का मंजर था । लोगों की छायाएँ तक नहीं मिल रही थी । द्वितीय विश्वयुद्ध की ये तबाहो आज भी दुनिया में चिह्न के रूप में मौजूद है । इस प्रकार से विवेकशील मानव की अविवेक का प्रमाण यहाँ प्रस्तुत है । इस पंक्ति में एक दिन अचानक हिरोशिमा पर अणुबम गिरा जिसके रौशनी से सारा हिरोशिमा प्रज्वलित हो उठा । यह प्रज्वल एक सूरज के समान थी । जो चारों ओर अचानक ही अपनी रौशनी बिखेर रही थी ।
( ख ) जब अणुबम शहर के बीचो – बीच गिरा तब सूरज की किरणें हर दिशा में पड़ने लगी । यह सूरज नगर के चौक पर दिशा हीन रूप से उगा था । अतः ये नगर के बीचो – बीच अचानक बरसने लगी । मानों सूर्य के रथ के पहिए टुट कर चारों दिशाओं में बिखड़ गए हों ।
( ग ) आज मानव वैज्ञानिक युग में जी रहा है । अतः यह प्रमाण है कि मनुष्य आज पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है । आज के परिवेश में मनुष्य ने हर वो काम किया है जिससे उसकी आराम , सुरक्षा एवं आर्थिक सम्पन्ना को दर्शाती है । यहीं सुरक्षा के रूप में अस्त्र – शस्त्र का निर्माण एवं प्रयोग होना शुरू है । अतः यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अणुबम का प्रयोग मानव के को ही दर्शाता है जो अपनी सुरक्षा हेतु लाखों लोगों की जान बड़े आराम से पंक्ति में अज्ञेयजी कहना चाहते हैं कि हिरोशिमा की यह घटना मनुष्य के कहीं से नहीं दे रही थी । मानव द्वारा बनाए हुए इस सूरज ( अणुबम ) ने विकसित रूप सकता है । यहाँ प्रस्तुत मानव होने का प्रमाण मानव को ही सोख लिया है ।