10th political science subjective question लोकतंत्र की चुनौतियाँ

लोकतंत्र की चुनौतियाँ

प्रश्न 1.  लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- लोकतंत्र में यह व्यवस्था रहती है कि लोग अपनी मर्जी से सरकार चुनें । लोकतंत्र wpa एक प्रकार का शासन है । एक सामाजिक व्यवस्था का सिद्धान्त है , विशेष प्रकार की मनोवृति चुनाव तथा आर्थिक आदर्श है ।

प्रश्न 2. गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है ?

उत्तर- गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपनी आकांक्षों और लाभों की संभावनाओं के मद्देनजर हो गठबंधन करने के लिए प्रेरित होते हैं , जिससे प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली पड़ जाती है । नई लोकसभा में करोड़पति सांसद की संख्या अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुँच गई है । सभी पार्टियों में आपराधिक छवि वाले सांसदों की संख्या में इजाफा लोकतंत्र के लिए चुनौती है ।

 प्रश्न 3. नेपाल में किस प्रकार की शासन व्यवस्था है ? लोकतंत्र की स्थापना में वहाँ क्या – क्या बधाएँ हैं ?

 उत्तर- नेपाल की संसद में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल , यूनाइटेड मार्क्ससिस्ट , लेनिनिस्ट यहाँ के माधव कुमार नेपाल को नेपाल का नया प्रधानमंत्री निर्वाचित किया गया । उन्हें 24 राजनीतिक दलों में से 21 दलों का समर्थन प्राप्त हुआ । 240 साल पुराने राजशाही को खत्म कर लोकतांत्रिक देश बनाई । इस मुल्क को अपना लोकतंत्र मजबूत करने की आवश्यकता है ।

प्रश्न 4. क्या शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए चुनौती है ?

 उत्तर- हाँ , शिक्षा का अभाव लोकतंत्र के लिए चुनौती है । नागरिक जागरूकता के अभाव में लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता है । शिक्षा ही उनके भीतर जागरूकता पैदा कर सकती है ।

प्रश्न 5. आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौती है , कैसे ?

 उत्तर- आतंकवाद देश की एकता और अखण्डता के लिए गंभीर खतरा है । इससे देश में शांति और व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होती है । इससे अलगाववाद व नक्सली गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है । इन गतिविधियों से आम लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता है और लोगों की शांति भंग हो जाती है । अतः हम कह सकते हैं कि आतंकवाद लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है । दीर्घ उत्तरीय प्रश्न विवेचना करें ।

 

प्रश्न 6. वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की कौन – कौन – सी चुनौतियाँ हैं ?

उत्तर- वर्तमान भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की चुनौतियाँ विकट रूप में विद्यमान है । भारतीय लोकतंत्र प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र है । इसमें शासन का संचालन , जन प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है । किसी भी लोकतंत्र की सफलता में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की भूमिका एक सर्वमान्य सत्य है । भारतीय लोकतंत्र में अनेक दीर्घकालिक और समसामयिक समस्याएँ हैं । इन समस्याओं में निश्चित रूप से महँगाई , बेरोजगारी , आर्थिक मंदी , ग्लोबल वार्मिंग , जलवायु परिवर्तन , विदेश नीति , आंतरिक सुरक्षा , रक्षा तैयारियाँ , आदि कई ज्वलंत मुद्दे हैं जिनपर संजिदा बहस जरूरी है । देश की अखंडता और एकता के लिए खतरा बन रही शक्तियों पर व्यापक परिचर्चा होनी चाहिए । यह खतरा केवल आतंकवादी गतिविधियों , पूर्वोत्तर के अलगाववादी या नक्सली गतिविधियों एवं अवैध शरणार्थियों से नहीं बल्कि बढ़ते आर्थिक अपराध से भी है । विदेशी मुद्रा का अवैध आवागमन विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई बहो धन राशि उच्च एवं न्यायिक प पर व्याप्त भ्रष्टाचार , असमानता और असंतुलन भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियाँ हैं । केन्द्र और राज्य के बीच आपसी टकराव से आतंकवाद से सड़ने और जनकल्याणकारी योजनाओं ( शिक्षा , जाति – भेद , लिंग – भेद , नारी शोषण आदि ) कुरीतियों के सुचारु क्रियान्वयन में बाधा पहुंचती है । जबकि कोई भी अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर सामंजस्य एवं तालमेल आवश्यक है । लोकतंत्र की बड़ी चुनौतियों में लोकसभा और राज्य सभा के चुनावों में होनेवाले अंधाधुंध चुनावी खर्च , उम्मीदवार के टिकट वितरण और चुनावों की पारदर्शिता भी सम्मिलित है । वंश और क्षेत्रीय पार्टियों तथा गठबंधन की राजनीति भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । स्पष्ट बहुमत नहीं आने पर सरकार बनाने के लिए छोटी – छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का आपस में गठबंधन करना , वैसे उम्मीदवारों को भी चुन लिया जाना जो दागी प्रवृत्ति या आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं लोकतंत्र के लिए एक अलग ही चुनौती है । लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी को लेकर भी चर्चाएँ होती रही हैं । भारत में लोकतंत्र की सफलता एक लिए यह आवश्यक है कि राजनीति में महिलाओं को सहभागिता बड़े व भारतीय राजनीति में महिलाओं को सक्रिय भागीदारी से ही लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है । प्रशासन इसके अतिरिक्त आज भारतीय यहाँ निर्णायक लोकतंत्र में भ्रष्टाचार , जातिवाद , परिवारवाद जैसो बुराइयों भूमिका निभाती है , जो लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है ।

प्रश्न 7. . बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र के विकास में कहाँ तक सहायक हैं ? 

उत्तर – बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारों लोकतंत्र के विकास में सहायक हैं । आज की महिलाएँ राष्ट्र की प्रगति के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है । खेतीवारी से लेकर वायुयान उड़ाने और अंतरिक्ष तक जा रही है । इसके बावजूद वे दोपम दर्जे की शिकार हैं । ग्रामीण महिलाओं के लिए सरकार ने नई पंचायती राज व्यवस्था में 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया है । गाँव में आज जो महिलाएँ पंच और सरपंच चुनी जा रही हैं , उनमें ज्यादातर अपने परिवार के पुरुषों के प्रभाव में काम कर रही हैं । ऐसा देखा जा रहा कि गाँव की पंचायतों , या नगर परिषदों में निर्वाचित महिला मुखिया के स्थान पर उसका पति / पुत्र अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है । किंतु इसके बावजूद राजनीति और प्रशासन में महिलाओं की सक्रिय भागेदारी से लोकतंत्र के मार्ग में हम एक कदम आगे अवश्य बड़े हैं ।

प्रश्न 8. परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है ?

उत्तर- प्रायः सभी राजनीतिक दलों के नेताओं में यह देखा जा रहा है कि लोग दलों के शीर्ष पर बैठे हैं और वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने सगे – संबंधियों , दोस्तों और रिश्तेदारों तथा अपने जाति के लोगों को दल के प्रमुख पदों पर बैठाते हैं । सामान्य कार्यकर्ता को दलों में ऊपर के पदों पर बैठने की गुंजाइश काफी कम रहती है । भारत में कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों पर वंशवाद का आरोप लगते रहे हैं । बिहार में जातिवादी राजनीति की जड़े काफी गहरी हैं । यहाँ को राजनीतिक पार्टियों यथा राष्ट्रीय जनता दल , लोक जनशक्ति पार्टी आदि की विशुद्ध राजनीति जाति पर आधारित हैं । ये पार्टियों लोगों में सामाजिक वैमनस्य फैलाकर अपनी जातियों के वोट हासिल करने का प्रयत्न करते हैं । शिक्षा के अभाव में ये जातियाँ राजनीतिक नेताओं के बहकावे में आकर अपना बहुमूल्य वोट गलत व आपराधिक छवि के नेताओं को भी दे डालते हैं । जिससे विकास और सामाजिक समरसता को धक्का लगता है । परिवारवाद और जातिवाद से ग्रसित शासनतंत्र लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है । यह न केवल देश की एकता व अखण्डता के लिए खतरा है बल्कि सामाजिक व आर्थिक संवृद्धि के लिए भी सबसे बड़ी बाधा है । इस शैली की राजनीति से बिहार को काफी नुकसान हो रहा है ।

 

प्रश्न 9.  क्या चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी मर्जी से सब कुछ कर सकते हैं ,

उत्तर- चुने हुए शासक लोकतंत्र में अपनी पजी से सब कुछ नहीं कर सकते हैं । यो लोकतंत्र जनता का , जनता के लिए और जनता के द्वारा संचालित व्यवस्था है । इसमें शासन का संचालन जन प्रतिनिधियों के द्वारा किया जाता है । भारतीय लोकतंत्र के तीन अंग हैं- कार्यपालिका , विधायिका और न्यायपालिका । इसमें कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी है और विधायिका न्यायपालिका के प्रति । विधायिका कानून बनाती है , कार्यपालिका इसे कार्यान्वित करती है और न्यायपालिका उन कानूनों की सभी करती है । किसी भी लोकतंत्र की सफलता में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । एक लोकतांत्रिक शासन के लिए वैध व उत्तरदायी शासन का होना आवश्यक है । अतः लोकतांत्रिक सरकार संविधान के दायरे में कार्य करती है । एक चुनी हुए सरकार अपनी मर्जी से सबकुछ नहीं कर सकती है । उन्हें लोकहित के मामलों को ध्यान में रखना पड़ता है ।

 प्रश्न 10. न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है कैसे ? इसके सुधार के उपाय क्या हैं ?

 उत्तर – हम राष्ट्रीय स्तर के सुधार के कुछ प्रस्ताव बना सकते हैं लेकिन हो सकता है कि असली चुनौती राष्ट्रीय स्तर का न हो । कुछ महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाव राज्य या स्थानीय स्तर पर दिए जा सकते हैं । यहाँ तक कि कानून बनाकर राजनीतिक सुधारों की बात सोचना लुभावना हो सकता है लेकिन इस पर पाबंदी लगाना भी आवश्यक है । सावधानी से बनाए गए कानून गलढ राजनीतिक आचरणों को हतोत्साहित और अच्छे कामकाज को प्रोत्साहित करेंगे । पर विधिक संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र की चुनौतियों का हल नहीं किया जा सकता है । राजनीति सुधारों का काम भी मुख्यतः राजनीतिक कार्यकर्ता , दल , आंदोलन और राजनीतिक रूप से सचेत नागरिक द्वारा ही हो सकता है । कई बार कानूनी बदलाव के परिणाम एकदम उलटे निकलते हैं , जैसे कई राज्यों ने दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को सख्ती से चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी , जिसके चलते अनेक लोग और महिलाएँ लोकतांत्रिक अवसर से वंचित हुई जबकि सरकार की मंशा ऐसी नहीं थी । राजनीतिक कार्यकर्त्ता को अच्छे काम के लिए बढ़ावा देने हेतु कानूनों के सफल होने की संभावना ज्यादा होती है । सबसे बढ़िया कानून वे हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक सुधार करने को ताकत देते हैं । सूचना का अधिकार इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है । ऐसे कानून से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है । लोकतांत्रिक सुधार मुख्यत : राजनीतिक दल ही करते हैं । अतः राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्यतः लोकतांत्रिक कामकाज पर ज्यादा मजबूत बनाने पर होना चाहिए । लोकतांत्रिक सुधारों के प्रस्ताव में लोकतांत्रिक आंदोलन , नागरिक संगठन और मीडिया पर भरोसा करने वाले उपायों की सफल होने की संभावना होती है ।

 प्रश्न 11. आतंकवाद लोकतंत्र की चुनौतियां हैं । स्पष्ट करें ।

उत्तर- आतंकवाद अलगाववाद और विखण्डन का मार्ग है । इससे सामाजिक एकता समरसता में बाधा पैदा होता है , लोगों का जीवन संकट में पड़ जाता है । कानून की व्यवस्था उल्लंघन होता है । लोगों के बीच आपसी भाइचारे भंग हो जाने से आर्थिक विकास को धक लगता है . इन आतंकवादी गतिविधियों की संलग्नता में देश में विद्यमान बेरोजगारी , गरीबी , अशि असमानता आदि का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । अपने व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए आतंक संगठन सरकार पर मनमाने ढंग से अपनी मांगों को थोपने की कोशिश करते हैं । ये संगठन गुमराह नवयुवकों को मुख्य राजनीतिक धारा से हयकर विध्वंसक गतिविधियों में लाने की चेष्टा हैं । इन गुमराह नवयुवकों को धर्म , जाति आदि नाम पर बाँटकर उसे आतंकवाद के मार्ग की धकेलने का भरसक प्रयास करते हैं जो लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है । आतंकवाद भी राजनीतिक , सामाजिक आर्थिक समस्या का समाधान नहीं है बल्कि वह एक विध्वंस क जो सामाजिक समरता और आर्थिक संवृद्धि को निगल सकता है ।

error: Content is protected !!