दीनबन्धु निराला
प्रश्न 1 . निराला को ‘ दीनबन्धु ‘ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – ” निराला ” जी सदैव दीन – दुखियों की सेवा में तत्पर रहा करते थे । गरीबों को स्वजन की तरह स्नेहपूर्वक मदद करना उनको प्रकृति ओर से प्राप्त था । लंगड़े – लूले , अन्धे अपाहिज लोगों को अन्न – वस्त्र देकर संतुष्ट कर देना उनका स्वभाव था । लोग उन्हें ” दीनबन्धु ” कहकर पुकारते थे । जो व्यक्ति दीन – दुखियों , पीड़ितों के पास जा – जाकर मदद करता हो , क्या वह मानव भगवान दीनबन्धु के समान ” दीनवन्धु ” कहलाते का अधिकारी नहीं । उपरोक्त अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही उन्हें ” दीनबन्धु ” कहा गया है ।
प्रश्न 2. निराला सम्बन्धी बातें लोगों को अतिरंजित क्यों जान पड़ती हैं ?
उत्तर- याचकों के लिए कल्पतरू होना , मित्रों के लिए मुक्त हस्त दोस्त – परस्त होना , मित्रों और अतिथियों के स्वागत सत्कार में अद्वितीय हौसला दिखाने वाले , लंगड़े – लूले , अन्धे , दीन जनों को खोज खोजकर मदद देने वाले निराला सम्बन्धित बातें लोगों को अतिरंजित जान पड़ती है । क्योंकि उपरोक्त गुणों का होना आसान नहीं । धनी लोग तो बहुत होते हैं लेकिन निराला जिस भाव से मदद दोनों को करते थे वह आम लोगों को अतिरंजित करने वाला ही है ।
प्रश्न 3. निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ( क ) ” जो रहीम दीनहिं लखै , दीनबन्धु सम होय ।
उत्तर- जो व्यक्ति गरीबों को देखता है , उसको मदद देता है वह व्यक्ति दीनबन्धु भगवान की तरह हो जाता है । ( ख ) ” पुण्यशील के पास सब विभूतियाँ आप ही आप आती हैं । ” उत्तर- जो व्यक्ति पुण्यशील होते हैं । जो उदार प्रवृत्ति के लोग होते हैं । उनके पास सब प्रकार की विभूतियाँ ( सुख – सम्पदा ) स्वयं पहुँच जाती हैं । अर्थात् पुण्यात्मा को भगवान पुण्य करने के लिए सब कुछ दे देते हैं । ( ग ) “ धन उनके पास अतिथि के समान अल्पावधि तक ही टिकने आता था । ” उत्तर- ” निराला ” जी इतने उदार प्रवृत्ति के थे कि जब जब धन का आय हुआ तब – तब दौड़ – दौड़कर , खोज – खोजकर दीनों की मदद में वे खर्च कर देते थे । इसलिए आज का आया पैसा आज ही खत्म कर देना उनका स्वभाव था । इसलिए कहा जा सकता है कि ‘ धन उनके पास कम समय तक ही टीक पाता था ।