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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
प्रश्न 1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
- (क) ज्युसेपे मेत्सिनी
- (ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
- (ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
- (घ) फ्रैंकफर्ट संसद
- (ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उत्तर– (क) ज्युसेपे मेत्सिनी: ज्युसेपे मेत्सिनी इटली का एक क्रांतिकारी था। वह इटली को एक राष्ट्र के रूप में देखना चाहता था। उसका जन्म 1807 में जेनोआ में हुआ था। वह ‘कार्बोनारी‘ के गुप्त संगठन का सदस्य था। 24 वर्ष की आयु में लिगुरिया में क्रांति करने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया। तत्पश्चात् उसने दो अन्य भूमिगत संगठनों : मार्सेई में ‘यंग इटली‘ और बर्न में ‘यंग यूरोप‘ की स्थापना की। ‘यंग यूरोप‘ के सदस्य पोलैंड, फ्रांस, इटली और जर्मन राज्यों के युवा थे। उनके विचार एक जैसे थे। मेत्सिनी का मानना था कि ईश्वर की इच्छा के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई है। अतः इटली छोटे-छोटे राज्यों और प्रदेशों के रूप में नहीं रह सकता। उसे एकीकृत करके एक व्यापक राष्ट्र और गणतंत्र बनाना ही होगा। उसके अनुसार केवल एकीकरण ही इटली की मुक्ति का आधार हो सकता था। उसके इस मॉडल की देखा-देखी जर्मनी, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड और पोलैंड में भी गुप्त संगठन बनाए गए। मेत्सिनी ने राजतंत्र का घोर विरोध किया और प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न ने रूढ़िवादियों को नतमस्तक कर दिया। ऑस्ट्रिया के चांसलर मैटरनिख ने उसे हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक शत्रु‘ बताया ।
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूरः कावूर सार्डीनिया-पीडमांट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय का मंत्री प्रमुख था। उसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। उसका न तो जनतंत्र में विश्वास था और न ही वह एक क्रांतिकारी था । वह इतालवी भाषा से अच्छी फ्रेंच बोलता था। फ्रांस के साथ सार्डीनिया-पीडमांट की एक कूटनीतिक संधि के पीछे कावूर का हाथ था। इसी संधि के परिणामस्वरूप 1859 ई० में सार्डीनिया-पीडमांट ऑस्ट्रियाई सेना को हराने में सफल रहा था।
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्धः यूनानी स्वतंत्रता युद्ध 1821 ई० में आरंभ हुआ। पंद्रहवी सदी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य का एक भाग था। अनेक राष्ट्रवादी यूनानी निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहे थे। इन निर्वासित यूनानियों को यूरोप के बुद्धिजीवियों का समर्थन प्राप्त था ये लोग यूनान की प्राचीन संस्कृति के प्रति सहानुभूति रखते थे। इसी समय यूनानी कवियों तथा कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर देश की प्रशंसा की। उन्होंने मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध अपने संघर्ष में जनमत भी तैयार किया। अंग्रेज़ कवि लार्ड बॉयरन तो धन इकट्ठा करके युद्ध तक लड़ने गए। वहाँ 1824 में बुखार के कारण उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि के अनुसार यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा प्रदान किया गया। यूनान के स्वतंत्रता संग्राम का राष्ट्रवाद के इतिहास में विशेष महत्त्व है। इसने यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार किया।
(घ) फ्रैंकफर्ट संसदः फ्रैंकफर्ट संसद का संबंध जर्मन राष्ट्र के निर्माण से है। 18 मई, 1848 को विभिन्न जर्मन प्रदेशों के 831 निर्वाचित सदस्यों ने एक जुलूस के रूप में फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में हुई थी। इस संसद ने जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान की रूप रेखा बनाई। राष्ट्र अध्यक्ष का पद प्रशा के राजा फ्रेडरिख विल्हेम चतुर्थ को सौंपने की पेशकश की गई। उसे संसद के अधीन रहना था परंतु उसने यह पेशकश ठुकरा दी। उसने उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। जहाँ- जहाँ कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ा, वहां संसद का सामाजिक आधार कमज़ोर होता गया। इसके अतिरिक्त संसद में मध्य वर्गों का प्रभाव अधिक था। इन वर्गों ने मज़दूरों और कारीगरों की माँगों की ओर ध्यान नहीं दिया तथा वह उनका समर्थन खो बैठे। अंत में सैनिकों को बुलाया गया और संसद को भंग कर दिया गया।
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिकाः राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की अपनी विशेष भूमिका रही। उन्होंने अपने राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपने राजनीतिक संगठन बनाए और समाचार पत्र निकाले । उन्होंने राजनीतिक बैठकों तथा प्रदर्शनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके बावजूद उन्हें मत देने के अधिकार से वंचित रखा गया था। सेंट पॉल चर्च में आयोजित फ्रैंकफर्ट संसद में उन्हें केवल एक छूट दी गई। वह यह थी कि उन्हें दर्शक दीर्घा में प्रेक्षकों के रूप में खड़ा होने दिया गया।
प्रश्न 2. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए ?
अथवा
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा प्रारंभ किए गए उपायों और कार्यों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने निम्नलिखित कदम उठाए:
(क) उन्होंने पितृभूमि (la patrie) तथा नागरिक (le citoyen) जैसे विचारों को लोगों तक पहुँचाया। इन विचारों ने संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया। इस समुदाय को एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार दिए जाने थे।
(ख) क्रांतिकारियों ने एक नया तिरंगा फ्रांसीसी झंडा चुना। इस झंडे ने पुराने राष्ट्रीय झंडे की जगह ली।
(ग) इस्टेट जेनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के एक समूह द्वारा किया जाने लगा। इस्टेट जेनरल का नाम बदल कर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।
(घ) क्रांतिकारियों द्वारा शहीदों के गुणगान, राष्ट्रीय गीत और शपथों ने भी राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा दिया।
(ङ) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई। इसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी लोगों के लिए एक समान कानून बनाए ।
(च) पूरे देश में माप-तोल की एक समान प्रणालियाँ लागू की गईं ।
(छ) देश के अंदर सभी प्रकार के आयात निर्यात कर समाप्त कर दिए गए।
(ज) भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर पूरे राष्ट्र की एक ही भाषा फ्रेंच हो गई।
प्रश्न 3. मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महत्त्व था ?
उत्तर – मारीआन और जर्मेनिया दो नारियों के चित्र हैं। उन्हें राष्ट्रों के रूपकों के रूप में चित्रित किया गया है। मारीआन फ्रांसीसी गणराज्य का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र का रूपक है। वास्तव में अठारहवीं तथा उन्नीसवीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्रों को मानवीय रूप प्रदान किया और उनकी अभिव्यक्ति एक साधारण नारी के रूप में की। फ्रांस ने 1850 में एक डाक टिकट पर मारीआन की तस्वीर छापी। उसकी प्रतिमाओं को सार्वजनिक स्थानों पर लगाया गया ताकि लोगों में राष्ट्रीय भावना जागती रहे। जर्मेनिया को बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने दिखाया गया, क्योंकि जर्मन बलूत को वीरता का प्रतीक माना जाता है।
महत्व : इन चित्रों ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल बनाया। इससे भी बढ़कर मारीआन ने फ्रांस को तथा जर्मेनिया ने जर्मनी को एक अलग राष्ट्र के रूप में पहचान दी।
प्रश्न 4. जर्मन एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएं।
उत्तर – जर्मनी के एकीकरण का आरंभ प्रशा के सिंहासन पर विलियम प्रथम के आसीन होने से । हुआ। उसने बिस्मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया । बिस्मार्क ने प्रशा को सैनिक- शक्ति बनाया और जर्मनी के एकीकरण की भूमिका तैयार की।
जर्मनी का एकीकरण: जर्मनी के एकीकरण का विचार वियना कांग्रेस के बाद ज़ोर पकड़ने लगा। वियना संधि के अनुसार जर्मनी को 30 राज्यों के ढीले-ढाले संघ में बदला गया। जर्मन देश – भक्तों ने इस संघ को दृढ़ बनाने के अनेक प्रयास किए। 1848 की क्रांति के मध्य फ्रैंकफर्ट की पार्लियामैंट ने जर्मनी को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास किया। परंतु प्रशा के राजा के कारण यह लक्ष्य पूरा न हो सका। वास्तव में जर्मनी के एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधाएं थीं। ऑस्ट्रिया इस एकीकरण के विरुद्ध था तथा फ्रांस के लिए संयुक्त जर्मनी एक खतरा था । स्वयं अनेक जर्मनवासी भी इस एकता के विरुद्ध थे। इन सब बाधाओं को बिस्मार्क ने दूर किया । वह 1862 ई० में जर्मनी का प्रधानमंत्री बना। उसने जर्मनी की सैनिक-शक्ति में वृद्धि की और ऑस्ट्रिया को अपना मित्र बनाया। दोनों ने मिलकर डेनमार्क से युद्ध किया और युद्ध से प्राप्त उपनिवेशों (डचियों) की आड़ लेकर उसने 1866 ई०
में ऑस्ट्रिया से युद्ध किया । जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया ही सबसे बड़ी बाधा थी । बिस्मार्क ने विश्व की शक्तियों को तटस्थ किया और ऑस्ट्रिया को सेडोवा में पराजित कर दिया। युद्ध के पश्चात् मेन नदी के उत्तर में स्थित सभी जर्मन रियासतों को मिलाकर उत्तरी जर्मनी नामक एक राज्य संघ की स्थापना की। 1867 ई० में इसमें मकेलनबर्ग तथा सैक्सनी को भी मिला दिया गया l 1871 ई० में फ्रांस को पराजित करने के पश्चात् जर्मनी के दक्षिणी राज्य बवेरिया, वाडेन, ब्यूर्टबर्ग आदि भी जर्मन साम्राज्य में सम्मिलित हो गए। प्रशा के राजा को समस्त जर्मनी का सम्राट् घोषित किया गया। इस प्रकार जर्मनी यूरोप के मानचित्र में एक राष्ट्र के रूप में उभरा।
प्रश्न 5. अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए ?
अथवा
“फ्रांस में नेपोलियन ने प्रजातंत्र को नष्ट किया था। परंतु प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया जिससे पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके।” तर्कों सहित इस कथन का विश्लेषण कीजिए
उत्तर – नेपोलियन फ्रांस का सम्राट् था। उसने अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को कुशल बनाने के लिए अनेक सामाजिक एवं प्रशासनिक सुधार किए। ये निम्नलिखित थेः
(क) नेपोलियन ने 1804 में नई नागरिक संहिता लागू की। यह संहिता नेपोलियन की संहिता के नाम से जानी जाती है।
(ख) जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गए।
(ग) कानून के सामने बराबरी तथा संपत्ति के अधिकार को और अधिक सुरक्षित बनाया गया।
(घ) नेपोलियन ने प्रशासन के विभाजन को सरल बनाया।
(ङ) सामंती प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
(च) किसानों को भू-दासता तथा जागीरदारों को लागू करों से मुक्ति दिलवाई गई।
(छ) शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्रण को समाप्त कर दिया गया।
(ज) यातायात तथा संचार प्रणाली में सुधार किए गए एक समान कानून व्यवस्था तथा।माप-तोल के एक समान पैमानों ने व्यापार को सुविधाजनक बनाया ।
(झ) पूरे देश में एक ही राष्ट्रीय मुद्रा प्रचलित की गई। जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला ।
प्रश्न 6. उदारवादियों की 1848 की क्रांति का क्या अर्थ लगाया जाता है ? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया ?
उत्तर – उदारवादियों की 1848 की क्रांति फ्रांसीसी समाज के मध्य वर्ग से संबंधित थी। इस क्रांति के कारण राजा को गद्दी छोड़ कर गणतंत्र की घोषणा करनी पड़ी। यह गणतंत्र पुरुषों के सर्वव्यापी मताधिकार पर आधारित था। यूरोप के अन्य देशों में जहां अभी स्वतंत्र राष्ट्र राज्य अस्तित्व में नहीं आए थे, उदारवादी मध्यवर्गों ने संविधानवाद की माँग उठाई। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय एकीकरण अर्थात् राष्ट्र राज्य का निर्माण करना ही था। यह राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता संघ बनाने की स्वतंत्रता तथा संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था। इस प्रकार उदारवादियों की 1848 की क्रांति का अर्थ राष्ट्रवाद की विजय से है जो राष्ट्र राज्यों के निर्माण का आधार था।
उदारवादियों के विचार: उदारवादियों ने निम्नलिखित राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया:
राजनीतिक विचार:
(क) उदारवादी निरंकुश राजतंत्र तथा पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों के विरोधी थे। वे एक ऐसी सरकार बनाना चाहते थे जो सभी की सहमति से बने ।
(ख) वे कानून के सामने बराबरी के पक्ष में थे। परंतु उनका यह विचार सबके लिए मताधिकार के पक्ष में नहीं था।
सामाजिक विचार:
(क) उदारवादियों ने प्रेस की स्वतंत्रता पर बल दिया।
(ख) उनका विचार था कि लोगों को संगठन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
आर्थिक विचारः
(क) उदारवादी बाजारों की मुक्ति और सामान तथा पूंजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए करों को समाप्त करने के पक्ष में थे।
(ख) वे निजी संपत्ति के स्वामित्व को अनिवार्य बनाना चाहते थे।
प्रश्न 7. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
उत्तर – राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कला, काव्य, कहानियों- किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने में सहयोग दिया। इस संबंध में निम्नलिखित तीन उदाहरण दिए जा सकते हैं:
(क) रूमानीवाद: रूमानीवाद एक संस्कृति आंदोलन था जो एक विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था। रूमानी कलाकारों तथा कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान पर बल देने के स्थान पर अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर बल दिया। वह एक साझी सामूहिक विरासत की अनुभूति और एक साझे सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाना चाहते थे। जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड जैसे रूमानी चिंतकों के अनुसार सच्ची जर्मन संस्कृति उसके आम लोगों (Das Volk) में निहित है। उनका विश्वास था कि राष्ट्र (Volkgeist) की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों से प्रकट होती है। लोक संस्कृति के इन घटकों को एकत्र और अंकित करना राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है।
(ख) स्थानीय बोलियां तथा लोक साहित्य: राष्ट्रवाद के विकास के लिए स्थानीय बोलियों पर बल और स्थानीय लोक साहित्य को एकत्र किया गया। इसका उद्देश्य आधुनिक राष्ट्रीय संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना था। यह बात विशेष रूप से पोलैंड पर लागू होती है। इस देश का अठारहवीं शताब्दी के अंत में रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी बड़ी शक्तियों ने विभाजन कर दिया था। भले ही पोलैंड अब स्वतंत्र भू-क्षेत्र नहीं था, तो भीसंगीत और भाषा के माध्यम से वहाँ राष्ट्रीय भावना को जीवित रखा गया। उदाहरण के लिए कैरोल कुर्पिस्की ने अपने ऑपेरा और संगीत से राष्ट्रीय संघर्ष का गुणगान कर पोलेनेस तथा माजुरका जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया।
(ग) भाषा: राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भाषा ने भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूस के अधीन पोलैंड में पोलिश भाषा को स्कूलों से बलपूर्वक हटा दिया गया था। इसके स्थान पर लोगों पर रूसी भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। इसके फलस्वरूप 1831 में वहां रूस के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को बलपूर्वक कुचल दिया गया। इसके बावजूद अनेक सदस्यों ने राष्ट्रवादी विरोध के लिए भाषा को अपना शस्त्र बनाया। चर्च के आयोजनों और संपूर्ण धार्मिक शिक्षा में पोलिश भाषा का प्रयोग किया गया। इसके फलस्वरूप बंदी बनाकर बड़ी संख्या में पादरियों और बिशपों को साइबेरिया भेज दिया क्योंकि उन्होंने रूसी भाषा का प्रचार करने से मना कर दिया था। इस तरह पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक बन गई।
प्रश्न 8. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताएं कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए ?
उत्तर – उन्नीसवीं सदी में राष्ट्रवाद एक नई शक्ति बनकर उभरा। इससे यूरोप की राजनीति में भारी परिवर्तन आए। अंततः यूरोप के बहु-राष्ट्रों वाले साम्राज्यों का स्थान राष्ट्र राज्यों ने ले लिया। इन राज्यों का क्षेत्र परिभाषित था और इनकी प्रभुसत्ता एक केंद्रीय शक्ति के हाथ में थी। ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, पोलैंड, हंगरी आदि इसी प्रकार के राज्य थे। इन राष्ट्रों के विकास के लिए भिन्न-भिन्न कारक उत्तरदायी थे, परंतु इनमें कुछ सामान्य कारक भी शामिल थे जो निम्नलिखित थे:
(क) शासकों का शक्तिशाली बनना
(ख) नागरिकों में एक साझा पहचान का भाव
(ग) समान संस्कृति, समान भाषा, समान इतिहास अथवा विरासत
(घ) समान इच्छा एवं संकल्प
(ङ) साथ मिलकर आगे बढ़ने की भावना ।
एक राष्ट्र के लोगों के साझेपन की यह भावना अनंतकाल से नहीं थी । यह संघर्षों तथा नेताओं तथा आम लोगों की गतिविधियों का परिणाम थी । इसी भावना ने भिन्न-भिन्न जन समूहों को राष्ट्र के रूप में बाँधा।
प्रश्न 9. ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किस प्रकार भिन्न था ?
अथवा
ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम किस प्रकार था ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में किसी क्रांति का परिणाम नहीं, अपितु एक लंबी प्रक्रिया का एक नमूना था। कुछ इतिहासकार तो ग्रेट ब्रिटेन को यूरोप के लिए राष्ट्र-राज्य एक मॉडल के रूप में देखते हैं। अठारहवीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन एक राष्ट्र नहीं था। ब्रितानी द्वीप समूह में अंग्रेज़, वेल्श, स्कॉट अथवा आयरिश आदि कई जातियां निवास करती थीं। इन सभी की पहचान नृजातीय थी। इनकी अपनी अलग-अलग संस्कृति तथा राजनीतिक परंपराएं थीं। जैसे-जैसे आंग्ल राष्ट्र (इंग्लैंड) की धन-संपदा, शक्ति तथा महत्त्व में वृद्धि होती गई, उसने द्वीप समूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया
आंग्ल संसद की शक्ति का विस्तार: आंग्ल संसद ने एक लंबे टकराव और संघर्ष के बाद 1688 में राजतंत्र से शक्ति छीन ली थी। इस संसद के माध्यम से ब्रिटेन में एक राष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ। 1707 ई० में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच एक्ट ऑफ़ यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड किंग्डम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन‘ का गठन हुआ। इस एक्ट के अनुसार इंग्लैंड कास्कॉटलैंड पर प्रभुत्व स्थापित हो गया। इसके बाद ब्रितानी संसद में आंग्ल सदस्यों का प्रभाव बना रहा। ब्रितानी पहचान को विकसित करने के लिए स्कॉटलैंड की विशेष संस्कृति और राजनीतिक संस्थाओं का योजनाबद्ध ढंग से दमन किया गया। स्कॉटिश हाइलैंड्स के लोगों को अपनी गेलिक भाषा बोलने अथवा अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने से मना कर दिया गया। इनमें से बहुत से लोगों को अपना देश छोड़ने को विवश होना पड़ा।
आयरलैंड का विलय : आयरलैंड के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार हुआ। यह देश कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट धार्मिक गुटों में बँटा हुआ था। इनमें से कैथोलिक बहुसंख्यक थे । अंग्रेजों ने उनके विरुद्ध प्रोटेस्टेंट धर्म मानने वालों का साथ दिया जिससे आयरलैंड में उनका प्रभुत्व स्थापित हुआ। कैथोलिकों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किए जिनको निर्ममता से कुचल दिया गया। वोल्फ़ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन (1798) के नेतृत्व में हुए विद्रोह की असफलता के बाद 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंग्डम में शामिल कर लिया गया । इस प्रकार एक नए ‘ब्रितानी राष्ट्र‘ का निर्माण होने के उपरांत नए ब्रिटेन के प्रतीक चिह्नों, ब्रितानी झंडा (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) का खूब गुण-गान किया गया।
प्रश्न 10. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा ?
अथवा
किस प्रकार 1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का बाल्कन प्रदेश था ? किन्हीं चार बिंदुओं द्वारा व्याख्या करें ।
उत्तर – 1871 के पश्चात् बाल्कन प्रदेश यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का मुख्य स्रोत था ।
इस क्षेत्र में मुख्यत: आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया, र्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया, माँटिनिग्रो आदि प्रदेश शामिल थे। इस क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहकर पुकारा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का अधिकतर हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के अधीन था। इस क्षेत्र में निम्नलिखित कारणों से तनाव पनपाः
(क) ऑटोमन साम्राज्य अत्यधिक कमज़ोर हो चुका था।
(ख) साम्राज्य के अधीन राष्ट्रों में राष्ट्रवाद की भावना दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी । इसलिए वे स्वतंत्रता की कामना करने लगे थे।
(ग) उन्होंने अपने-अपने इतिहास द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वे कभी स्वतंत्र थे। परंतु बाद में विदेशी शक्तियों ने उन्हें अपने अधीन कर लिया। अतः उन्हें स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए।
(घ) सभी बाल्कन राज्य एक-दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और प्रत्येक राज्य अपने लिए अधिक- से अधिक प्रदेश हथियाना चाहता था। फलस्वरूप उनके बीच गहरा तनाव व्याप्त था।
(ङ) बाल्कन क्षेत्र में यूरोपीय शक्तियों की प्रतिस्पर्धा के कारण यह तनाव और अधिक गहरा हो गया। रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया-हंगरी आदि सभी देशों ने ऑटोमन
साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर वहां अपना प्रभाव जमाने का प्रयास किया। फलस्वरूप बाल्कन क्षेत्र में कई युद्ध हुए। इन युद्धों ने प्रथम विश्वयुद्ध की भूमिका तैयार की।
प्रश्न 11. यूरोप से बाहर के देशों में राष्ट्रवादी प्रतीकों के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठी करें। एक या दो देशों के विषय में ऐसी तस्वीरें, पोस्टर्स और संजीत इकट्ठा करें जो राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर– भारत राष्ट्र के प्रतीक
(क) भारत माता की तस्वीर
(ख) तिरंगा
(ग) राष्ट्रगान। जन-गन-मन…
(घ) राष्ट्रीय गीत। – वन्दे मातरम्
(ङ) राष्ट्र-चिह्न सारनाथ में अशोक स्तम्भ का शीर्ष
(च) राष्ट्रीय पुष्प (कमल), राष्ट्रीय पशु (बाघ) आदि ।
ये प्रतीक यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रतीकों से इस दृष्टि में भिन्न हैं कि ये भारत राष्ट्र की पहचान हैं तथा भारतीयों को एकजुट होने तथा अपने राष्ट्र पर गर्व करने के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 12. रेनन की समझ के अनुसार एक राष्ट्र की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दें। उनके मतानुसार राष्ट्र क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर- रेनन के अनुसार एक राष्ट्र की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं:
(क) राष्ट्र लंबे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिंदु होता है।
(ख) इसका आधार वीरता भरा अतीत, महापुरुषों के नाम तथा प्राचीन गौरव होता है।
(ग) एक जनसमूह के राष्ट्र होने की आवश्यक शर्तें हैं: अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में एक समान इच्छा तथा संकल्प का होना, एक साथ मिलकर महान् कार्य करना और भविष्य में इसी प्रकार के कार्य करते रहने की इच्छा।
(घ) एक राष्ट्र की किसी देश के विलय अथवा उस पर उसकी इच्छा के विरुद्ध अधिकार जमाए रखने में कोई रुचि नहीं होती।
(ङ) वास्तव में राष्ट्र एक बड़ी तथा व्यापक एकता है। इसका अस्तित्व प्रतिदिन होने वाले जनमत संग्रह में निहित है।
महत्त्व: रेनन के अनुसार राष्ट्रों का होना जरूरी है, क्योंकि ये स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। यदि संसार में केवल एक ही कानून हो और उसे लागू करने वाला एक ही व्यक्ति हो तो स्वतंत्रता का लोप हो जाएगा।
प्रश्न 13. उन राजनीतिक उद्देश्यों का विवरण दें जिन्हें आर्थिक कदमों द्वारा हासिल करने की उम्मीद लिस्ट को है।
उत्तर – फाइडरीख लिस्ट का राजनीतिक उद्देश्य केवल और केवल जर्मनी का एकीकरण करना था। वह इस उद्देश्य की पूर्ति जर्मन राज्यों की आर्थिक व्यवस्था को एक-दूसरे की पूरक बनाकर पूरा करना चाहता था। उसके अनुसार एक मुक्त आर्थिक व्यवस्था ही राष्ट्रीय भावनाओं को जगाने का तरीका है।
प्रश्न 14. व्यंग्यकार क्या दर्शाने का प्रयास कर रहा है ?
उत्तर – व्यंग्यकार वियना कांग्रेस द्वारा स्थापित नई व्यवस्था के निम्नलिखित दोषों को दर्शाने का प्रयास कर रहा है:
(क) निरंकुश सरकारें: नई शासन व्यवस्थाएं निरंकुश थीं। वे अपनी आलोचना तथा अपनी बात की उपेक्षा को सहन नहीं करती थीं। उन्होंने निरंकुश सरकारों की वैधता को चुनौती देने वाली प्रत्येक गति का दमन करने का प्रयास किया।
(ख) कठोर सेंसरशिप: निरंकुश सरकारों ने फ्रांसीसी क्रांति के स्वतंत्रता अथवा मुक्ति के विचार का दमन करने के लिए सेंसरशिप के कठोर नियम बनाए। ऐसी सभी अखबारों, किताबों, नाटकों, गीतों आदि पर कड़ा सेंसर बिठा दिया गया जिनमें फ्रांसीसी क्रांति के विचार झलकते थे।
प्रश्न 15. सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के कारणों का वर्णन करें। पत्रकार के नज़रिए पर टिप्पणी करें।
उत्तर – पत्रकार के अनुसार सिलेसियाई बुनकरों के विद्रोह के कारण निम्नलिखित थे:
(क) सिलेसिया के बुनकर ठेकेदारों से कच्चा माल लेकर उनके लिए कपड़ा तैयार करते थे। परंतु वे उनको दाम बहुत कम देते थे।
(ख) बेरोजगारी के कारण काम की मांग बढ़ने लगी। इसका लाभ उठाकर ठेकेदारों ने तैयार माल की कीमतें और भी गिरा दीं।
प्रश्न 16. ऊपर उद्धत तीन लेखकों द्वारा महिलाओं के अधिकार के प्रश्न पर व्यक्त विचारों की तुलना करें। उनसे उदारवादी विचारधारा के बारे में क्या स्पष्ट होता है ?
उत्तर। (क) कार्ल वेल्कर एक उदारवादी राजनीतिज्ञ थे जो फ्रैंकफर्ट संसद के निर्वाचित सदस्य थे। उनके अनुसारः
(i) पुरुष अधिक ताकतवर, निर्भीक तथा मुक्त है, जबकि महिला कमज़ोर है।
(ii) पुरुष परिवार का रखवाला तथा भरण-पोषण करने वाला है। इसके विपरीत महिला का कार्य घर-परिवार तथा बच्चों की देखभाल करना है।
(ख) स्त्री-पुरुष की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता के आधार पर स्त्रियों के अधिकारों तथा हितों का बोध नारीवाद कहलाता है। तीनों लेखकों के महिलाओं के अधिकारों संबंधी प्रश्न पर अलग-अलग विचार हैं।
प्रश्न 17. आपकी राय में चित्र 1 ( देखें एन०सी०ई०आर०टी० पुस्तक पृष्ठ संख्या 1 ) किस प्रकार एक कल्पनादर्शी दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है ?
उत्तर – हमारी राय में चित्र 1 में जो दर्शाया गया है वह ‘जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों‘ से मिलकर बना है। इसमें विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के लोग दिखाए गए हैं। इसमें सभी लोग एक जलूस के रूप में स्वतंत्रता की मूर्ति के सामने आते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसमें भिन्न- भिन्न राष्ट्रों तथा क्रांतिकारियों के झंडे भी दिख रहे हैं। यह एक ऐसे समाज की कल्पना है जो इतना आदर्श है कि इसका साकार होना लगभग असंभव है।
प्रश्न 18. कल्पना कीजिए कि आप एक बुनकर हैं जिसने चीज़ों को बदलते हुए देखा है। आपने क्या देखा, इस आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर– 1830 ई० का दशक यूरोप में बड़ी कठिनाइयाँ लेकर आया । उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में एकाएक जनसंख्या में वृद्धि हुई और मांग बढ़ने लगी। इसके विपरीत बुनकरों को अब इंग्लैंड से आयातित मशीनी सस्ते कपड़े से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलने लगी। मशीन से बना माल सस्ता व सुंदर था। बुनकरों द्वारा हाथ से बना माल महँगा पड़ता था। इसके अतिरिक्त बुनकरों को ठेकेदारों के शोषण का शिकार होना पड़ता था। ठेकेदार कच्चा माल देकर निर्मित कपड़ा बुनकरों से लेते थे। धीरे-धीरे बुनकर गरीब होने लगे। अंतः राष्ट्रीय सभा ने एक गणतंत्र की घोषणा करके 21 वर्ष से ऊपर सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी।
प्रश्न 19. इस व्यंग्य चित्र का वर्णन करें। इसमें बिस्मार्क और संसद के निर्वाचित डेप्यूटीज़ के बीच किस प्रकार का संबंध दिखायी देता है? क्या यहाँ चित्रकार लोकतांत्रिक प्रतिक्रियाओं की व्याख्या करना चाहता है ?
उत्तर – इस चित्र में बिस्मार्क को एक हंटर घुमाते हुए तथा संसद शेष के प्रतिनिधियों को अपना बचाव करते हुए दिखाया गया है। बिस्मार्क के हाथ में हंटर एक प्रतीक के रूप में है जिससे यह लगता है कि जर्मनी का शासन दिखावे के रूप में जनतंत्र है। वास्तव में यह एक – तंत्र है अर्थात् एक ही व्यक्ति का शासन सभी प्रतिनिधियों पर बिस्मार्क का दबदबा है। कोई भी उसका विरोध करने में सक्षम नहीं है। व्यंग्यकार ने इस चित्र के द्वारा बिस्मार्क के जनतंत्र का मजाक उड़ाया है।
चित्र-14 (ख) की जाँच करें। कौन-सा क्षेत्र सबसे पहले एकीकृत इटली का हिस्सा बना ? सबसे आखिर में कौन-सा क्षेत्र शामिल हुआ ? किस साल सबसे ज्यादा राज्य एकीकृत इटली में शामिल हुए ?
उत्तर – चित्र – 14 ( क ) को देखकर ऐसा नहीं लगता कि किसी क्षेत्र में रहने वाले लोग अपने-आपको इतालवी मानते होंगे। मानचित्र के अलग-अलग रंग इस बात की पुष्टि करते हैं। इस समय तक इटली विभिन्न राज्यों में बँटा हुआ था और वहाँ एकीकरण की कोई भावना दिखाई नहीं देती थी।
प्रश्न 20. चित्रकार ने गैरीबाल्डी को सार्डीनिया- पीडमाँट के राजा को जूते पहनाते दिखाया है। अब इटली के नक्शे को फिर देखें। यह व्यंग्य चित्र क्या कहने का प्रयास कर रहा है ?
उत्तर– चित्रकार ने इस चित्र के द्वारा सार्डीनिया- पीडमाँट के राजा की महानता को दर्शाया है। गैरीबाल्डी राजा को बूट पहनाकर इटली के एकीकरण के लिए तैयार कर रहा है।
प्रश्न 21. बॉक्स में दिए गए (नीचे दिए गए ) चार्ट की सहायता से वेइत की जर्मेनिया के गुणों को पहचानें और चित्र में दिए गए वेइत के काइजर के मुकुट को उस जगह चित्रित किया गया था जहाँ अब उन्होंने टूटी हुई बेड़ियाँ दिखाई गई हैं। इस बदलाव का महत्त्व स्पष्ट करें।
प्रतीकों के अर्थ
प्रतीक | महत्त्व |
टूटी हुई बेड़ियाँ | आज़ादी मिलना |
बाज़-छाप कवच | जर्मन साम्राज्य की प्रतीक- शक्ति |
‘बलूत पत्तियों का मुकुट | वीरता |
तलवार | मुकाबले की तैयारी |
तलवार पर लिपटी जैतून की डाली | शांति की चाह |
काला, लाल और सुनहरा तिरंगा | 1948 में उदारवादी -राष्ट्रवादियों का झंडा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स ने प्रतिबंधित घोषित कर दिया। |
‘उगते सूर्य की किरणें | एक नए युग का सूत्रपात |
प्रश्न 23. बताएं कि चित्र में आपको क्या दिखाई पड़ रहा है ? राष्ट्र के इस रूपात्मक चित्रण में ह्यूबनर किन ऐतिहासिक घटनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं ?
उत्तर – चित्र में जर्मन राष्ट्र की प्रतीक जर्मीनिया को निराश मुद्रा में लेटे दिखाया गया है। इस चित्र द्वारा चित्रकार ह्यूबनर यह दर्शाने का प्रयास कर रहे हैं कि विभाजित जर्मनी को देखकर जर्मेनिया मन से दुखी है।