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समाजवाद एवं साम्यवाद
प्रश्न.1. खुनी रविवार क्या है? [2020, 2022]
Ans- 1905 ईo के रूस-जापान युद्ध में रूस एशिया के एक छोटे से देश जापान से पराजित हो
गया | पराजय के अपमान के कारण जनता
ने क्रांति कर दी | 9 जनवरी 1905 ईo लोगों का
समूह प्रदर्शन करते हुए सेंट पीट्सबर्ग स्थित महल कि ओर जा रहे थे | जार के सेना ने इन निहत्थे पर गोलियां बरसाईं
जिसमें हज़ारों लोग मारे गये | यह घटना रविवार के दिन हुई, अतः इसे खुनी रविवार के
नाम से जाना जाता है |
प्रश्न.2. अक्टूबर क्रांति क्या है? [2018,2019]
Ans- 7 अक्टूबर 1917 ईo में बोल्शेविकों ने पेट्रोग्राद के स्टेशन, बैंक, डाकघर, टेलीफोन केंद्र, कचहरी तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया | केरेन्सकी भाग गया और शासन की बागड़ोर बोल्शेविकों के हाथों में आ गयी जिसका अध्यक्ष लेनिन को बनाया गया | इसी क्रांति को बोल्शेविक क्रांति या अक्टूबर क्रांति कहा जाता है |
प्रश्न.3. सर्वहारा वर्ग किसे कहते है? [ 2012,2018]
Ans- समाज का वह वर्ग जिसमें गरीब किसान, कृषक मजदूर, सामान्य मजदूर, श्रमिक एवं आम लोग शामिल हो, उसे सर्वहारा वर्ग कहते है |
प्रश्न.4. पूंजीवाद क्या है ? [2019]
Ans- पूंजीवादी ऐसी राजनीतिक–आर्थिक व्यवस्था है जिसमें निजी सम्पत्ती तथा निजी लाभ की अवधारणा को मान्यता दी जाती है | यह सार्वजनिक क्षेत्र में विस्तार एवं आर्थिक गतिविधियों में सरकारी हस्तक्षेप का विरोथ करती है |
प्रश्न.5. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी ? [ 2022]
उत्तर- रूस में जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग किसानों का ही था लेकिन उनकी स्थिति बँधुआ मजदूरों की तरह थी । वे सामंतों के अधीन थे और जमीन से बँधे थे । 1861 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने कृषि दासता को समाप्त कर दिया था , परंतु इससे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था । उनके खेत बहुत छोटे छोटे थे जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे । उनके पास पूँजी का भी अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे । ऐसे में किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी थी और किसान 1917 की क्रांति के मजबूत स्तंभ बन गए
प्रश्न .6.रूसी क्रांति के दो कारणों का वर्णन करें । [2013,2017,218,2019,2021]
उत्तर- रूसी क्रांति के दो महत्त्वपूर्ण कारण थे-
(i) निरंकुश शासन – क्रान्ति का एक महत्त्वपूर्ण कारण जारशाही की निरंकुशता था । रूस का जार हमेशा विरोधियों को कठोर से कठोर दंड दिया करता था । लोगों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं थी । जार की दमनकारी व्यवस्था के कारण निरंकुश शासन असहनीय हो गया था । रासपुटीन नामक एक भ्रष्ट पादरी शासन के कार्यों में हस्तक्षेप करता था । इस अत्याचार से प्रजा का विरोध और असंतोष बढ़ता जा रहा था ।
(ii) कृषक एवं मजदूरों की दयनीय स्थिति – रूसी समाज के बहुसंख्यक किसान वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी । मजदूर तथा श्रमिक भी शोषण के शिकार थे । अतः किसान – मजदूर जारशाही के विरोधी बन गए |
Q.7. साम्यवादी एक नई आर्थिक सामाजिक व्यवस्था थी, कैसे ?[2014,2017]
Ans- रूस में क्रांति के बाद नई सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हुई । सामाजिक असमानता समाप्त कर दी गयी । वर्गविहीन समाज का निर्माण कर रूसी समाज का परंपरागत स्वरूप बदल दिया गया । पूँजीपति और जमींदार वर्ग का उन्मूलन कर दिया गया । समाज में एक ही वर्ग रहा , जो साम्यवादी नागरिकों का था । काम के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बना दिया गया । व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त कर पूँजीपतियों का वर्चस्व समाप्त कर दिया गया । देश की सारी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया । इस प्रकार , एक वर्गविहीन और शोषणमुक्त सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हुई । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रूसी क्रांति के बाद साम्यवाद एक नई कि एवं सामाजिक व्यवस्था थी
प्रश्न .8. कार्ल मार्क्स के विषय में आप क्या जानते हैं ? [ 2012]
उत्तर- कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था । मार्क्स पर रूसो , मांटेस्क्यू एवं हीगले की विचारधारा का गहरा प्रभाव था । मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया । मार्क्स ने पूँजीवाद की घोर भर्त्सना की और श्रमिकों के हक की बात उठायी । उसने ‘ दुनिया के मजदूरों एक हो ‘ का नारा दिया । मार्क्स ने अपने विख्यात पुस्तक दास केपिटल का प्रकाशन 1867 में किया जिसे ” समाजवादियों की बाइबिल ‘ कहा जाता है |
Q.9. “रूस की क्रांति ने पूरे विश्व को प्रभावित किया” किन्हीं दो उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करें | [2011]
Ans :- 1917 की रुसी क्रांति के प्रभाव काफी व्यापक और दूरगामी थे |इसका प्रभाव न केवल रूस पर बल्कि विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा जो निम्नलिखित थे –
(1) रुसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में बँट गया –साम्यवादी एवं पूँजीवादी विश्व | धर्मसुधार आंदोलन के पश्चात और साम्यवादी क्रांति के पहले यूरोप में वैचारिक स्तर पर इस तरह का विभाजन नहीं देखा गया था |
(2) रुसी क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश –मुक्ति को प्रोत्साहन दिया एवं इन देशों में होनेवाले राष्ट्रीय आंदोलन को अपना वैचारिक समर्थन प्रदान किया |
प्रश्न 10. लेनिन के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालें । [2019,2020]
उत्तर- रूसी इतिहास में लेनिन का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वह बोल्शेविक क्रांति का प्रणेता था । उसका जन्म 10 अप्रैल 1870 को वोल्गा नदी के किनारे स्थित सिमब्रस्क नामक गाँव में हुआ था । वह आरम्भ से ही विद्रोही था । लेनिन जारशाही का कट्टर दुश्मन था । वह बोल्शेविक दल का सदस्य बन गया । लेनिन ने 1905 की रूसी क्रांति में भाग लिया । क्रांति असफल हो गई और उसे रूस छोड़कर जाना पड़ा । 1917 की क्रांति के समय जर्मनी की सहायता से वह रूस पहुँचा । उसने रूस पहुँचकर बोल्शेविक दल का कार्यक्रम स्पष्ट किया । लेनिन ने तीन नारे दिए भूमि , शांति और रोटी भूमि किसानों को , शांति सेना को और रोटी मजदूरों को ट्राटस्की के सहयोग से उसने करेन्सकी की सरकार का तख्ता पलट दिया । लेनिन नई बोल्शेविक सरकार का अध्यक्ष बन गया । उसका उद्देश्य रूस का नवनिर्माण करना था ।
लेनिन की उपलब्धियाँ- सर्वप्रथम लेनिन ने जर्मनी के साथ युद्ध बंद कर दिया । 1918 में जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि की । उसने राष्ट्रीयता का सिद्धांत अपनाया तथा साम्राज्यवाद विरोधी नीति अपनाई । ‘ चेका ‘ और ‘ लाल सेना ‘ की सहायता से क्रांतिकारियों का दमन किया । बोल्शेविक सरकार ने नई आर्थिक नीति लागू की जिसके तहत देश की सारी सम्पत्ति तथा उत्पादन और वितरण के समस्त साधनों पर सरकार का आधिपत्य हो गया । स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार दिए । धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाई । निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की । लेनिन ने प्रशासनिक सुधार कर पुराने नौकरसाह को हटा दिया । आर्थिक सुधारों के लिए 1921 ई ० में नयी आर्थिक नीति अपनाई । इस प्रकार उन्होंने रूस का नवनिर्माण किया । 1924 में उनकी मृत्यु हो गई ।
प्रश्न 11. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें | [2017]
उत्तर- रूस की बोल्शेविक क्रांति के दूरगामी और व्यापक प्रभाव पड़े । इसका प्रभाव न सिर्फ रूस पर बल्कि विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा । इस क्रांति के रूस पर निम्नलिखित प्रभाव हुए –
(i) स्वेच्छाचारी जारशाही का अंत – 1917 की बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप अत्याचारी एवं निरंकुश राजतंत्र की समाप्ति हो गई ।रोमनोव वंश के शासन की समाप्ति हुई तथा रूस में जनतंत्र की स्थापना की गई ।
(ii) सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद की स्थापना- बोल्शेविक क्रांति ने पहली बार शोषित सर्वहारा वर्ग को सत्ता और अधिकार प्रदान किया । नई व्यवस्था के अनुसार भूमि का स्वामित्व किसानों को दिया गया । उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया गया । मजदूरों को मतदान का अधिकार दिया गया ।
(iii) नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना- क्रांति के बाद रूस में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की गई । यह व्यवस्था साम्यवादी विचारधारा के अनुकूल थी । प्रशासन का उद्देश्य कृषकों एवं मजदूरों के हितों की सुरक्षा करना एवं उनकी प्रगति के लिए कार्य करना था । रूस में पहली बार साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई ।
(iv) नई सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था- क्रांति के बाद रूस में नई सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हुई । सामाजिक असमानता समाप्त कर दी गई । वर्गविहीन समाज का निर्माण कर रूसी समाज का परंपरागत स्वरूप बदल दिया गया ।
क्रांति का विश्व पर प्रभाव- रूसी क्रांति का विश्व के दूसरे देशों पर भी प्रभाव पड़ा । ये प्रभाव निम्नलिखित थे— •
(i) पूँजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार के प्रयास- विश्व के जिन देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था थी । वे भी अब यह महसूस करने लगे कि बिना सामाजिक आर्थिक समानता के राजनीतिक समानता अपर्याप्त है ।
(II) साम्यवादी सरकारों की स्थापना- रूस के समान विश्व के अन्य देशों चीन , वियतनाम इत्यादि में भी बाद में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई । साम्यवादी विचारधारा के प्रसार और प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रसंघ ने भी मजदूरों की दशा में सुधार लाने के प्रयास किए । इस उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना की गई ।
(iii) साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र – बोल्शेविक क्रांति ने साम्राज्यवाद के पतन का मार्ग प्रशस्त कर दिया । रूस ने सभी राष्ट्रों में विदेशी शासन के विरुद्ध चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को अपना समर्थन दिया । एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशों से स्वतंत्रता के लिए प्रयास तेज कर दिए गए ।
(iv) नया शक्ति संतुलन- रूस के नवनिर्माण के बाद रूस साम्यवादी सरकारों का अगुआ बन गया । दूसरी ओर अमेरिका पूँजीवादी राष्ट्रों का नेता बन गया । इससे विश्व दो शक्ति खंडों में विभक्त हो गया । इसने आगे चलकर दोनों खेमों में सशस्त्रीकरण की होड़ एवं शीतयुद्ध को जन्म दिया ।
प्रश्न 12.यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें ।[2016]
उत्तर- यूटोपियन समाजवादी आदर्शवादी थे , उनके कार्यक्रम की प्रवृति अव्यावहारिक थीं । इन्हें ” स्वप्नदर्शी समाजवादी ” कहा गया क्योंकि उनके लिए समाजवाद एक सिद्धांत मात्र था । अधिकतर यूटोपियन विचारक फ्रांसीसी थे जो क्रांति के बदले शांतिपूर्ण परिवर्तन में विश्वास रखते थे अर्थात् वे वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय के हिमायती थे । प्रथम यूटोपियन ( स्वप्नदर्शी ) समाजवादी जिसने समाजवादी विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया वह फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन था । उसका मानना था कि राज्य और समाज का पुनर्गठन इस प्रकार होता चाहिए जिससे शोषण की प्रक्रिया समाप्त हो तथा समाज के गरीब तबकों की स्थिति में सुधार लाया जा सके । उसने घोषित किया ‘ प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार ‘ । एक अन्य महत्त्वपूर्ण यूटोपियन विचारक चार्ल्स फूरिए था । वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था तथा उसका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कसबों में काम करना चाहिए । इससे पूँजीपति उनका शोषण नहीं कर पाएँगे । फ्रांसीसी यूटोपियन चिंतकों में एकमात्र व्यक्ति जिसने राजनीति में भी हिस्सा लिया लुई ब्लॉ था । उसका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है । यद्यपि आरंभिक समाजवादी अपने आदशों में सफल नहीं हो सके , लेकिन इन लोगों ने ही पहली बार पूँजी और श्रम के बीच संबंध निर्धारित करने का प्रयास किया