Class 10 Social Science NCERT Solutions History in Hindi Chapter – 4 भारत में राष्ट्रवाद

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भारत में राष्ट्रवाद

1. खिलाफत आन्दोलन क्यों हुआ?

Ans:- ‘ तुर्की का सुल्तान ‘ खलीफा इस्लामी जगत का धर्मगुरु था । सेवर्स की संधि द्वारा उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा नष्ट कर दी गई । इससे भारतीय मुसलमान नाराज हो गए । खलीफा को पुरानी शक्तिफिर से स्थापित करने के लिए 1919 में अली बंधुओं मोहम्मद अली और शौकत अली ने खिलाफत आंदोलन शुरू की। 17 अक्टूबर , 1919 को खिलाफत दिवस मनाया गया ।

2. रोलेक्ट एक्ट से आप क्या समजते है?

Ans:- ब्रिटिश सरकार ने भारतियों को कुचलने के लिए एक क़ानून बनाया था जिसे रोलेट एक्ट कहा जाता है | यह एक ऐसा कानून था कि जिसमे किसी भी भारतीय कोश के आधार पर 2 साल के लिए जेल भेज दिया जाता था जिसके लिए न कोई अपील न दलील और ना ही वकालत कर सकता था |

3. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था?

Ans:-दांडी यात्रा 12 मार्च , 1930  कोनमक कानून तोड़ने के लिए की गई । नमक के उत्पादन पर सरकार का नियंत्रण था । गाँधीजी इसे अन्याय समझते थे । अतः दांडी पहुँचकर 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर उन्होंने नमक कानून को तोड़ दिया।

4. गाँधी इरविन पैक्ट अथवा दिल्ली समझोता क्या था ?

Ans:-5 मार्च सन् 1931 को लंदन द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के पूर्व महात्मा गांधी और तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता जिसे गांधी-इरविन समझौताकहते हैं। इसे “दिल्ली पेक्ट” भी कहते हैं। हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जाएगा।

5.  चम्पारण सत्याग्रह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

Ans:-चंपारण सत्याग्रह अप्रैल , 1917 में बिहार के चंपारण जिले में हुआ थाजिसका कारण वहाँ के किसानों को बगान मलिम तीनकठिया (3/20)कानून के अंतर्गत नील की खेती करने को मजबूर करते थे |इस कानून को समाप्त करने के लिए  महात्मा गाँधी ने चंपारण में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया । 1918 में चंपारण एग्रेरियन कानून पारित कर निलहों का अत्याचार रोक दिया गया एवं तीन कठिया प्रणाली समाप्त की गई ।

6. मेरठ षड्यंत्र से आप कयता समझते है ?

Ans:-मेरठ षड्यंत्र मामला एक विवादास्पद अदालत का मामला था। मार्च 1929 में ब्रिटिश सरकार ने 31 श्रमिक नेताओ को बन्दी बना लिया तथा मेरठ लाकर उन पर मुक़दमा चलाया।

7. जतरा भगत के बारे में आप जानते है, संछेप में लिखे |

Ans:-जतरा भगत ब्रिटिश भारत में एक आदिवासी नेता, स्वतंत्रता सेनानी थे| उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा किए गए अत्याचार के खिलाफ ‘मालगुजारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और टैक्स नहीं देंगे’ आंदोलन का ऐलान किया था. इस आंदोलन में उनके साथ लाखों लोग जुड़ने लगे जिसके बाद साल 1914 में ब्रिटिश सरकार ने घबरा कर जतरा उरांव को गिरफ्तार कर लिया|

8. ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कोंग्रस की स्थापना क्यों हुई ?

Ans:- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1920 में लीग ऑफ नेशंस के इन्टरनेशनल और ऑर्गनाइजेशन (अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन) में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए AITUC का गठन किया गया था। 1920 के दशक में ब्रिटिश साम्यवादियों ने मजदूर संघों के गठन के प्रयास में अधिकांश महासंघ पर नियंत्रण पा लिया था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 .असहयोग आंदोलन को गाँधी जी ने क्यों स्थगित किया?

Ans:- महात्मा गाँधी द्वारा आरंभ किया गया असहयोग आंदोलन ( 1920-22 ) प्रथम जन – आंदोलन था । गाँधीजी का यह आंदोलन सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित था । इस आंदोलन को समाज का हर वर्ग अपना समर्थन दे रहा था । लेकिन 5 फरवरी , 1922 को गोरखपुर ( उत्तर प्रदेश ) के चौरी – चौरा नामक स्थान पर आंदोलनकारियों की भीड़ ने पुलिस थाना पर हमला कर 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया । इस घटना से गाँधी जी काफी दुखित हुए । चूँकि उनका आंदोलन पूरी तरह अहिंसात्मक था । अतः उन्होंने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय ले लिया ।

2 .चम्पारण सत्याग्रह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

Ans:- भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग महात्मा गाँधी ने चंपारण में ही किया था । चंपारण सत्याग्रह अप्रैल , 1917 में बिहार के चंपारण जिले में हुआ थाजिसका कारण वहाँ के किसानों के ऊपर नील के बागान मालिकों का अत्याचार था । उस समय चम्पारण में बागान व्यवस्था के अंतर्गत नील की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही थी । नील के साहबों ने अपनी कोठियाँ स्थापित कर रखी थी । ये किसानों को तीनकठिया प्रणाली के अंतर्गत नील की खेती करने को मजबूर करते थे । इस व्यवस्था के द्वारा किसानों को अपनी सबसे अच्छी उपजाऊ भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करनी होती थी । किसान नील उपजाना नहीं चाहते थे , क्योंकि इससे जमीन की उर्वरता कम हो जाती थी । किसानों को उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिलता था जिससे उनकी स्थिति काफी दयनीय हो गई थी । इसके अलावा किसानों से बेगारी भी बागान मालिकों द्वारा कराई जाती थी । उनका आर्थिक और शारीरिक शोषण भी किया जाता था । इससे किसानों की स्थिति काफी चिंताजनक हो गयी थी । इन्हीं बातों को लेकर महात्मा गाँधी ने चंपारण में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया । 1918 में चंपारण एग्रेरियन कानून पारित कर निलहों का अत्याचार रोक दिया गया एवं तीन कठिया प्रणाली समाप्त की गई ।

4 .असहयोग आंदोलन प्रथम जन – आंदोलन था। कैसे?

Ans:-महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाया गया असहयोग आंदोलन प्रथम जन – आंदोलन था । इस आंदोलन को असहयोग और बहिष्कार से शुरुआत किया गया । इस आंदोलन का व्यापक जनाधार था । इस आंदोलन में शहरी वर्ग में मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानों , आदिवासियों एवं श्रमिकों का व्यापक समर्थन मिला । इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ – साथ भारतीयों ने मेसोपोटामिया युद्ध में भरती होने से इनकार कर दिया ।

5 .स्वदेशी आंदोलन का उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा?

Ans:- 1905 के बंग – भंग आंदोलन ने स्वदेशी और बहिष्कार की नीति से भारतीय उद्योग लाभान्वित हुए । धागा के स्थान पर कपड़ा बनाना आरंभ हुआ । इससे वस्त्र उत्पादन में तेजी आई । 1912 तक सूती वस्त्र का उत्पादन दोगुना हो गया । उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह आयात शुल्क में वृद्धि करे तथा देशी उद्योगों को रियायत प्रदान करे । कपड़ा उद्योग के अतिरिक्त अन्य छोटे उद्योगों का भी विकास हुआ ।

6. प्रथम विश्व युद्ध के दो कारणों का वर्णन करें

Ans:- प्रथम विश्वयुद्ध के दो कारण निम्नलिखित थे –

(i) गुटबन्दी – प्रथम विश्वयुद्ध में विश्व दो खेमों में बँट गया । एक और जर्मनी , ऑस्ट्रिया , हंगरी और तुर्की थे जिन्हें केन्द्रीय शक्ति कहा गया । दूसरे खेमें में मित्र राष्ट्रों का देश ब्रिटेन , फ्रांस , इटली , रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका था ।

(II) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा – साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए प्रतिद्वंद्विता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है ।

7 .बिहार के किसान आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखें।

Ans:- 1922-23 में शाह मुहम्मद जुबैर ने मुंगेर में किसान सभा का गठन किया । बिहार में किसान आंदोलन को सहजानन्द ने प्रभावी बनाया । 1928 में इन्होंने बिहटा में तथा 1929 में सोनपुर में किसान सभा की स्थापना की । 1936 में उन्हीं की अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ । पहली सितम्बर , 1936 को बिहार सहित समूचे देश में किसान दिवस ‘ मनाया गया । किसानों ने बकाश्त आंदोलन भी चलाया । किसान जमींदारी शोषण , बेगारी की समाप्ति एवं लगान में कमी की माँग कर रहे थे ।

8. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारणों पर प्रकाश डालें।

Ans:-भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कई कारण थे । अंग्रेजी शासन के परिणामस्वरूप भारत का राजनीतिक एकीकरण , राजनीतिक संस्थाओं का विकास , अंग्रेजी शिक्षा की प्रगति , प्रेस , रेल , दूर – संचार का विकास , पाश्चात्य विचारधारा का प्रसार आदि हुआ । दूसरी तरफ , इसके प्रजातीय भेदभाव , दमनकारी नीति , आर्थिक शोषण के कारण प्रतिक्रिया उत्पन्न होने से भी राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ । मध्यम वर्ग का उदय , सामाजिक – धार्मिक आंदोलन , भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव की भावना आदि भी इसके उदय के कारण थे ।

9. साइमन कमीशन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

Ans:-साइमन कमीशन फरवरी , 1928 में भारत आया । इस कमीशन का उद्देश्य संवैधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था । 1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायित्व शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करना एवं आवश्यक सुझाव देना था ।आयोग के मुंबई पहुंचने पर इसका स्वागत काले झंडों से किया गया एवं ‘ साइमन वापस जाओ ‘ के नारे लगाए गए । देश भर में इसका विरोध हुआ । प्रदर्शनकारियों पर अंग्रेजी पुलिस ने प्राणघातक हमला किया ।

10. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहाँ हुई थी?

Ans:-भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत 19 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से माना जाता है । 1883 ई ० में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बोस ने कलकत्ता में नेशनल काँफ्रेंस ‘ नामक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन बुलाया जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट करना था । परंतु , दूसरी तरफ एक अंग्रेज अधिकारी एलेन ऑक्टोवियन ह्यूम ने इस दिशा में अपने प्रयास शुरू किए और 1884 में ‘ भारतीय राष्ट्रीय संघ ‘ की स्थापना की ।

भारतीयों को संवैधानिक मार्ग अपनाने और सरकार के लिए सुरक्षा कवच बनाने के उद्देश्य से ए ० ओ ० ह्यूम ने 28 दिसम्बर 1885 को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की । इसके प्रारंभिक उद्देश्य निम्नलिखित थे –

(i) भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के नाम से जुड़े लोगों के संगठनों के बीच एकता की स्थापना का प्रयास ।

(ii) देशवासियों के बीच मित्रता और सद्भावना का संबंध स्थापित कर धर्म , वंश , जाति या प्रांतीय विद्वेष को समाप्त करना

(iii) राष्ट्रीय एकता के विकास एवं सुदृढ़ीकरण के लिए हर संभव प्रयास करना ।

(iv) राजनीतिक तथा सामाजिक प्रश्नों पर भारत के प्रमुख नागरिकों से चर्चा करना एवं उनके संबंध में प्रमाणों का लेखा तैयार करना ।

(v) प्रार्थना पत्रों तथा स्मार पत्रों द्वारा वायसराय एवं उनकी काउन्सिल से सुधारों हेतु प्रयास करना । इस प्रकार कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देश्य शासन में सिर्फ सुधार करना था ।

11. दांडी यात्रा का उद्देश्य क्या था?

Ans:-नमक के व्यवहार और उत्पादन पर सरकारी नियंत्रण था । गाँधीजी इसे अन्याय मानते थे एवं इसे समाप्त करना चाहते थे । नमक कानून भंग करने के लिए 12 मार्च , 1930 को गाँधीजी अपने 78 सहयोगियों के साथ दांडी यात्रा ( नमक यात्रा पर निकले । वे 6 अप्रैल , 1930 को दांडी पहुँचे । वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया । इसी के साथ नमक सत्याग्रह ( सविनय अवज्ञा आंदोलन ) आरंभ हुआ और शीघ्र ही पूरे देश में फैल गया ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 .असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।

Ans:-महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन असहयोग आंदोलन था । इस आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

( i ) रॉलेट कानून— 1919 ई ० में न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट कानून ( क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम ) बना । इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार कर जेल में डाला जा सकता था इसके खिलाफ वह कोई भी अपील नहीं कर सकता था ।

( ii ) जलियाँवाला बाग हत्याकांड -13 अप्रैल , 1919 ई ० को बैसाखी मेले के अवसर पर पंजाब के जलियाँवाला बाग में सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ लोग एकत्रित हुए थे । जनरल डायर के द्वारा वहाँ पर निहत्थी जनता पर गोली चलवाकर हजारों लोगों की जानें ले ली गयी । गाँधीजी ने इस पर काफी प्रतिक्रिया व्यक्त किया ।

( iii ) खिलाफत आंदोलन —इसी समय खिलाफत का मुद्दा सामने आया 1919 में अलीबंधुओं ने खलीफा की शक्ति की पुनर्स्थापना के लिए खिलाफत आंदोलन आरंभ किया । गाँधीजी ने इस अंदोलन को अपना समर्थन देकर हिंदू – मुस्लिम एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त अंग्रेजी राज विरोधी असहयोग आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया ।

परिणाम :-5 फरवरी , 1922 ई . को गोरखपुर के चौरी – चौरा नामक स्थान पर हिसक भीड़ द्वारा थाने पर आक्रमण कर 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी । जिससे नाराज होकर गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल बंद करने की घोषणा की । असहयोग आंदोलन का व्यापक परभाव पड़ा |

असहयोग आंदोलन के अचानाक स्थगित हो जाने और गाँधीजी की गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया । हिंदू – मुस्लिम एकता भंग हो गई तथा संपूर्ण भारत में संप्रदायिकता का बोलबाला हो गया । न ही स्वराज की प्राप्ति हुई और न ही पंजाब के अन्यायों का निवारण हुआ । असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप ही मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास के द्वारा स्वराज पार्टी की स्थापना हुई |

2 .भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधी जी की भूमिका की विवेचना करें।

Ans:-भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में 1919-1947 का काल गाँधी युग के नाम से जाना जाता है । राष्ट्रीय आंदोलन को गाँधीजी ने एक नई दिशा दिया । सत्य , अहिंसा , सत्याग्रह का प्रयोग कर गाँधीजी भारतीय राजनीति में छा गए । इन्हीं अरबों का सहारा लेकर उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध राष्ट्रीय आंदोलनों को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया ।

1917-18 में उन्होंने चंपारण ,खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया । 1920 ई ० में गाँधीजी ने अहसयोग आंदोलन आरंभ किया । जिसमें बहिष्कार , स्वदेशी तथा रचनात्मक कार्यक्रमों पर बल दिया गया । 1930 में गाँधी जी ने सरकारी नीतियों के विरुद्ध दूसरा व्यापक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया । इसका आरंभ उन्होंने 12 मार्च , 1930 को दांडी यात्रा से किया । गाँधीजी कानिर्णायक आंदोलन 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन था जिसमें उन्होंने लोगों को प्रेरित करते हुए ‘ करो या मरो ‘ का मंत्र दिया ।

     गांधीजी  के सतत् प्रयत्नों के परिणामस्वरूप ही 15 अगस्त , 1947 को भारत को आजादी प्राप्त हुई । वे एक राजनीतिक नेता के साथ – साथ प्रबुद्ध चिंतन समाजसुधारक एवं हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे ।

3. सविनय अवज्ञा आंदोलन का क्या परिणाम हुआ?

Ans:-सविनय अवज्ञा के निम्नलिखित परिणाम हुए –

(i) इस आंदोलन ने समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण किया तथा लोगों में अंग्रेज विरोधी भावनाएँ व्याप्त हुई ।

(ii) सर्वप्रथम इस आंदोलन में महिलाओं का प्रभावी भूमिका देखा गया ।

(iii) आर्थिक बहिष्कार की नीति से ब्रिटिश आर्थिक हितों को क्षति पहुँची ।

(iv) इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा 1935 ई . में

4. जलियाँ वाला बाग हत्या कांड का वर्णन संक्षेप में करें।

Ans:-डॉ ० सत्यपाल तथा डॉ . सैफुद्दीन  किचलू की गिरफ्तारी और रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल , 1919 को एक सभा हो रही थी । सभा में पूर्णत : शांति थी । इसी समय जनरल डायर नामक एक अंग्रेज अफसर आया और एक मात्र प्रवेश द्वार को घेर लिया । उसने बिना कोई चेतावनी दिए सभा उपस्थित निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दीं । गोलीबारी लगभग दस मिनट तक करीब 1650 राउंड चलती रही । फलतः करीब 179 लोग मारे गए और लगभग 2000 घायल हुए । अत्याचार की हद तब और मनुष्यता का उल्लघंन कर गई जब पंजाब में फौजी कानून ( मार्शल लॉ ) लगा दिया गया । पंजाब में हुए अत्याचार की खबर पाते ही सारे देश में खलबली मच गई । लेकिन , फौजी कानून से जनता आतंकित नहीं हुई और इसके तुरंत बाद खिलाफत और असहयोग आंदोलन आरंभ हुए । डायर की इस ‘ बेमिसाल पशुता और जान – बूझकर किए गए नरसंहार ‘ से अंग्रेजों की आत्मा काँप उठी और उन्होंने भी इसकी निंदा की थी । इस घटना से विक्षुब्ध होकर गाँधीजी ने ‘ केसर – ए – हिन्द ‘ तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘ सर ‘ की उपाधि लौटा दी ।

5 .प्रथम विश्व युद्ध के भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ अर्न्त संबंधों की विवेचना करें।

Ans:-प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की व्यवस्था करना है । इससे आशान्वित होकर भारतीय युद्ध प्रयासों में सरकार का सहयोग करने लगे , परन्तु ऐसा नहीं हुआ । इससे राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गई ।

युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भरती कर उन्हें विदेश भेजा गया । सरकार ने इस खर्च पर सीमा शुल्क एवं अन्य करों ? वृद्धि की । इससे महँगाई और गरीबी बढ़ी जिससे जनता आक्रोशित हो उठी।युद्धकाल में भारत सहित विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ गई । इसे दबाने के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया जिसकी भारतीयों में तीखी प्रतिक्रिया हुई । युद्धकाल में स्वराज – प्राप्ति के लिए प्रयास तेज कर दिए गए । होमरूल आंदोलन द्वारा पूरे देश में स्वशासन की माँग के लिए वातावरण तैयार किया गया । कांग्रेस के उदारवादियों और राष्ट्रवादियों का भी मेल हुआ जिससे आंदोलन को नई दिशा मिली ।

 भारत सचिव मांटेग्यू ने अगस्त , 1917 में संवैधानिक सुधारों की घोषणा की । इसके आधार पर मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड योजना लागू की गई । अंततः प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत सहित पूरे एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रवादी भावना को प्रबल बनाया ।

6 .रॉलेट एक्ट क्या था? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे प्रभावित किया?

Ans:-भारत में बढ़ती राष्ट्रवादी आंदोलनों एवं असंतोष को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1919 में रॉलेट एक्ट पास किया । इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना साक्ष्य एवं वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी मुकदमों में फैसले तथा उस पर मुकदमा चलाकर दंड भी दे सकती थी । के विरुद्ध अपील भी नहीं कर सकते थे ।

भारतीयों ने इस कानून का विरोध कर इसे ‘ काला कानून ‘ कहा । गाँधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन करने वाला बताया । इसके बाद गाँधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ कर दिया । इस कानून के विरोध में कई स्थानों पर प्रदर्शन हुए । देश भर के दुकानों तथा कारखानों में हड़ताल हुए । विरोधी सभाएँ हुई । पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई । अनेक व्यक्ति मारे गए । इससे क्रुद्ध भीड़ ने डाकखाना , बैंक , तारघर , रेलवे स्टेशन पर तोड़ – फोड़ कर घटना को अंजाम दिया । घटना की जानकारी लेने जब गाँधीजी अमृतसर जा रहे थे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । गिरफ्तारी से देश भर में आक्रोश फैल गया । स्थिति काबू से बाहर हो जाने पर नगर का शासन सेना के हाथों में सौंप दिया गया । इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन प्रभावित हुआ ।

7. प्रथम विश्व युद्ध के भारत पर हुए प्रभावों का वर्णन करें।

Ans:-प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा था । विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों से राष्ट्रीय आंदोलन भी प्रभावित हुआ । ब्रिटेन ने भारतीय नेताओं की सहमति लिए बिना भारत को युद्ध में घसीट लिया था । कांग्रेस , उदारवादियों और भारतीय रजवाड़ों ने इस उम्मीद से अंग्रेजी सरकार को समर्थन दिया कि युद्ध के बाद उन्हें स्वराज की प्राप्ति होगी , परंतु ऐसा नहीं हुआ । प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित कर दिया जिससे जनता की स्थिति काफी बदतर हो गई । विश्वयुद्ध का प्रभाव राजनीतिक गतिविधियों पर भी पड़ा । विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियाँ काफी बढ़ गई तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला ।गातावाधया काफी बढ़ गई तथा राष्ट्रवादी आंदोलन को बल मिला ।

8 .भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें।

Ans:- 20 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में मजदूरों के आंदोलन हुए तथा उनके संगठन बने । श्रमिक आंदोलन को वामपंथियों का सहयोग एवं समर्थन मिला । शोषण के विरुद्ध श्रमिक वर्ग संगठित हुआ । अपनी माँगों के लिए इसने हड़ताल का सहारा लिया । प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व , इसके दौरान एवं बाद में अनेक हड़तालें हुई । हड़ताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए मजदूरों ने अपने संगठन बनाए । 1920 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन का गठन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ । विभिन्न श्रमिक संगठनों को इससे सम्बद्ध किया गया । आगे चलकर साम्यवादी प्रभाव के कारण इस संघ में फूट पड़ गई और साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित संगठन – ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन एंड ट्रेड यूनियन काँग्रेस का गठन हुआ । 1935 में तीनों श्रमिक संघ पुनः एकजुट हुए , तब से श्रमिक संघ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं ।

9. सविनय अवज्ञा आंदोलन का वर्णन करें।

Ans:- 1920 और 1930 के बीच में भारतीय राष्ट्रवादी गतिविधियाँ बढ़ गई थीं । असहयोग आंदोलन की विफलता , 1919 के अधिनियम तथा साइमन आयोग ( 1927 ) से असंतोष , नेहरू रिपोर्ट ( 1928 ) को सभी दलों का सहयोग न मिलना और हिन्दू – मुस्लिम असहमति पूर्ण स्वराज्य की माँग ( 1929 ) आदि के कारण भारतीय राजनीति में उबाल आ गया था । ऐसे माहौल में गाँधीजी ने नमक कानून के विरोध के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया । इस आंदोलन में सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया । इस प्रकार यह राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन साबित हुआ । इसके पश्चात भारतीयों ने ब्रिटिश राजनीतिक व आर्थिक नीतियों का विरोध किया । भारतीय महिलाओं ने बहिष्कार की नीति को सफल बनाने में सक्रिय रूप से भाग लिया । 20 वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में मजदूरों के आंदोलन हुए तथा उनके संगठन बने । श्रमिक आंदोलन को वामपंथियों का सहयोग एवं समर्थन मिला । शोषण के विरुद्ध श्रमिक वर्ग संगठित हुआ । अपनी माँगों के लिए इसने हड़ताल का सहारा लिया । प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व , इसके दौरान एवं बाद में अनेक हड़तालें हुई । हड़ताल को सुचारू रूप से चलाने के लिए मजदूरों ने अपने संगठन बनाए । 1920 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन का गठन लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुआ । विभिन्न श्रमिक संगठनों को इससे सम्बद्ध किया गया । आगे चलकर साम्यवादी प्रभाव के कारण इस संघ में फूट पड़ गई और साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित संगठन – ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन एंड ट्रेड यूनियन काँग्रेस का गठन हुआ । 1935 में तीनों श्रमिक संघ पुनः एकजुट हुए , तब से श्रमिक संघ विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रभाव में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं ।

10. ‘ अखिल भारतीय’ कांग्रेस की स्थापना कैसे हुई ? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्य थे?

Ans:- 1885 ई ० के पूर्व देश में कोई अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था नहीं थी । आर्म्स ऐक्ट और इलबर्ट बिल पर हुए विवाद एवं भारतीय प्रतिक्रिया को देखते हुए एक अखिल भारतीय राजनीतिक दल ( संगठन ) की आवश्यकता महसूस की गई । अतः 1883 ई ० में इंडियन एसोसिएशन के सचिव आनंद मोहन बसु ने कलकत्ता में ‘ नेशनल कॉन्फ्रेस ‘ का आयोजन किया , जिसका उद्देश्य बिखरे हुए राष्ट्रवादी शक्तियों को एक जुट करना था । इसी समय एक उदारवादी सेवानिवृत्त अंग्रेज पदाधिकारी ए ० ओ ० ह्यूम भी इस दिशा में प्रयासरत थे । ह्यूम ने लॉर्ड डफरिन एवं ब्रिटिश पार्लियामेन्ट्री कमिटी की सहमति से नेशनल कांग्रेस की स्थापना की घोषणा दिसम्बर , 1885 में की । इसका अधिवेशन 28 दिसम्बर , 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ । इसकी अध्यक्षता उमेशचन्द्र बनर्जी ने की । काँग्रेस का आरंभिक उद्देश्य राष्ट्रीय एकता स्थापित करना , भारतीयों में मैत्री और सहयोग की भावना विकसित करना , देशहित में कार्य करना , राजनैतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श करना , भारतीय समस्याओं को दूर करने के लिए अंग्रेजी सरकार को स्मारपत्र देना आदि ।

11 .सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों का वर्णन करें।

Ans:-ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई ० में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे-

(i) साइमन कमीशन- सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में बनाया गया यह 7 सदस्यीय आयोग था जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे । भारत में साइमन कमीशन के विरोध का मुख्य कारण कमीशन में एक भी भारतीय को नहीं रखा जाना तथा भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था ।

(ii) नेहरू रिपोर्ट – कांग्रेस ने फरवरी , 1928 में दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया । समिति ने ब्रिटिश सरकार से ‘ डोमिनियन स्टेट ‘ की दर्जा देने की माँग की । यद्यपि नेहरू रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सका , लेकिन संप्रदायिकता की भावना उभरकर सामने आई । अतः गाँधीजी ने इससे निपटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम पेश किया ।

(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी – 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा । भारत का निर्यात कम हो गया लेकिन अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया । पूरे देश का वातावरण सरकार के खिलाफ था । इस प्रकार सविनय अवज्ञा आंदोलन हेतु एक उपयुक्त अवसर दिखाई पड़ा ।

(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव- इस समय कांग्रेस के युवा वर्गों के बीच मार्क्सवाद एवं समाजवादी विचार तेजी से फैल रहे थे , इसकी अभिव्यक्ति कांग्रेस के अंदर वामपंथ के उदय के रूप में हुई । वामपंथी दबाव को संतुलित करने हेतु आंदोलन के नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी ।

(v) क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार – इस समय भारत की स्थिति विस्फोटक थी । ‘ मेरठ षड्यंत्र केस ‘ और ‘ लाहौर षड्यंत्र केस ‘ ने सरकार विरोधी विचारधारा को उग्र बना दिया था । बंगाल में भी क्रांतिकारी गतिविधियाँ एक बार फिर उभरी ।

(vi) पूर्णस्वराज्य की भाँग – दिसंबर , 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की माँग की गयी । 26 जनवरी , 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा के साथ ही पूरे देश में उत्साह की एक नई लहर जागृत हुई ।

(vii) गाँधी का समझौतावादी रुख – आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व गाँधी वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष अपनी 11 सूत्रीय माँग को रखा । परंतु इरविन ने माँग मानना तो दूर गाँधी से मिलने से भी इनकार कर दिया । सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था । अतः बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना आंदोलन दांडी मार्च से आरंभ करने का निश्चय किया ।

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