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अर्थव्यवस्था एवं आजीविका
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. औद्योगीकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया था ?
Ans:- औद्योगीकरण और कारखानेदारी प्रथा के विकास का मजदूरों की पर बुरा प्रभाव पड़ा । शहरों में उन्हें काम हुन आवास तथा छटनी क समस्या से जूझना पड़ा । उन्हें कम पारिश्रमिक पर हो लंबे समय तक काम करना पड़ता था । बेकारी को समस्या से त्रस्त मजदूर मशानाकरण का विरो करने लगे । वे संगठित होकर अपनी स्थिति में सुधार के लिए आंदोलन लगे ।
2 . औद्योगिक क्रांति के किन्हीं दो नकारात्मक प्रभावों को बताएँ ।
Ans:- औद्योगिक क्रांति के दो नकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं …
(i) औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर उत्पादन होना हुआ जिसकी खपत के लिए यूरोप में उपनिवेशों की होड़ शुरू हो गयी और आगे चलकर इस उपनिवेशवाद ने साम्राज्यवाद का रूप में लिया ।
(ii) औद्योगिक क्रांति के कारण समाज में पूँजीपति वर्ग एवं श्रमिक वर्ग का विकास हुआ । उद्योगों पर पूँजीपति वर्ग का नियंत्रण स्थापित हो गया इन्होंने मजदूरों का शोषण आरंभ किया जिससे श्रमिक वर्ग का उदय हुआ । इनकी स्थिति शोचनीय थी । वे शोषण , गरीबी और भुखमरी के शिकार हो गए ।
3. स्लम पद्धति की शुरुआत कैसे हुई ?
Ans:- छोटे , गदै और अस्वास्थ्यकर स्थानों में जहाँ फैक्ट्री मजदूर निवास करते हैं । वैसे आवासीय स्थलों को ‘ स्लम ‘ कहा जाता है ।
औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप बड़े – बड़े कारखाने स्थापित हुए जिसमें काम करने के लिए बड़ी संख्या में गाँवों से मजदूर पहुँचने लगे । वहाँ रहने को कोई व्यवस्था नहीं थी । मजदूर कारखाने के निकट रहें , इसलिए कारखाने के मालिकों ने उनके लिए छोटे – छोटे तंग मकान बनवाए । जिसमें सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं । इन मकानों में हवा , पानी तथा रोशनी तथा साफ – सपई की व्यवस्था भी नहीं थी । इस प्रकार औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप स्लम पद्धति की शुरुआत हुई ।
4 . औद्योगिकीकरण से आप क्या समझते हैं ?
Ans:- औद्योगिकीकरण अथवा उद्योगों की बृहत् रूप में स्थापना उस औद्योगिक क्रांति की देन है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम द्वारा न होकर मशीनों के द्वारा होता है । इसमें उत्पादन बृहत् पैमाने पर होता है और जिसकी खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है । किसी भी देश के आधुनिकीकरण का एक प्रेरक तत्त्व उसका औद्योगिकीकरण होता है । अतः औद्योगिकीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन मशीनों के द्वारा कारखानों में होता है । इस प्रक्रिया में घरेलू उत्पादन पद्धति का स्थान कारखाना पद्धति ले लेता है ।
5. घरेलू और कुटीर उद्योग को परिभाषित करें ।
Ans:- घरेलू और कुटीर उद्योग स्थानीय स्तर पर चलाए जाते हैं । इनमें अपेक्षाकृ कम पूँजी और श्रम लगता है । गाँधीजी के अनुसार ” कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है । ” ये राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । ये सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति के शक्तिशाली औजार है । कुटीर उद्योग जनसंख्या के बड़े शहरों में प्रवाह को रोकता है ।
6 . औद्यौगिक क्रांति क्या है ?
Ans:- औद्योगीकरण ऐसी प्रक्रिया थी जिसके उत्पादन की पद्धति को बदल दिया 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से उत्पादन में नई तकनीक और मशीनों का व्यवहार आरंभ हुआ । मानव श्रम के स्थान पर मशीन उत्पादन का क करने लगी । उत्पादन की यह नई प्रक्रिया औद्योगिक क्रांति है ।
7 . औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई ? इसके क्या उद्देश्य थे ?
Ans:- औद्योगिक आयोग की नियुक्ति सन् 1916 में हुई । भारतीय उद्योग तथा व्याप के भारतीय वित्त से संबंधित उन क्षेत्रों का पता लगाना , जिसे सरकार सहायत दे सके ।
8. फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किन्हीं दो कारणों को बतायें ।
Ans:- फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किन्हीं कारण निम्नलिखित थे –
(i) मशीनो एवं नये – नये यंत्रो का आविष्कार,
(ii) उधोग तथा व्यापार के नये – नये केंद्रों के विकास ने फैक्ट्री प्रणाली को विकसित किया ।
9. विऔद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ?
Ans:- ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कारण देशी उद्योगों में लगातार नई 10 वीं शताब्दी के दूसरे भाग से मैनचेस्टर में बने कपड़ों का बड़े पैमाने पर आयात किया गया । इससे हमारी पर इससे बुरी स्थिति बस्त्र उद्योग को हुई बंगाल में अनेक बुनकरों ने काम ही निरुद्योगीकरण कहते हैं ।
10. औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई ? इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर- औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 ई ० में हुई । इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग एवं व्यापार का पता लगाकर उसे सरकारी सहायता देना था ।
11. बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर – औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप ही बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति हुई । इसे ही मध्यम वर्ग कहा जाता है जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों की शोषणमूलक नीति के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाई ।
12. 18 वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन – कौन – से थे ?
उत्तर- 18 वीं शताब्दी में वस्त्र , धातु , चीनी तथा चमड़ा आदि भारत के प्रमुख उद्योग थे । सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में भारतीय उपमहाद्वीप विश्व का सर्वश्रेष्ठ उत्पादक क्षेत्र था ।
13. निरुद्योगीकरण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- औद्योगीकरण के कारण भारत में कुटीर उद्योगों का ह्रास होने लगा । उद्योगों के इसी हास को निरुद्योगीकरण कहते हैं ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. न्यूनतम मजदूरी कब पारित हुआ और इसके क्या उद्देश्य थे ?
Ans:- मजदूरों को आजीविका एवं उसके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सरकार सन् 1948 में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया ।
उदेश्य- न्यूनतम मजदूरी कानून 1948 के द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की निश्चित की गयी प्रथम पंचवर्षीय योजना में इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया तथा दूसरी योजना में यहाँ तक कहा गया कि न्यूनतम मजदूरी उनकी ऐसी होनी चाहिए जिससे मजदूर केवल अपना ही गुजारा न कर सके , बल्कि इससे कुछ और अधिक हो , ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाये सके । तीसरी पंचर्षीय योजना में मजदूरी बोर्ड स्थापित किया गया और बोनस देने के लिए बोनस आयोग की भी नियुक्ति हुई |
2 . कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण की गति प्रदान की । कैसे ?
Ans:- कोयला एवं लोहा कारखानों एवं मशीनों को चलाने के लिए आवश्यक है भारत में कोयला उद्योग 1814 से शुरू हुआ । वस्त्र उद्योग की प्रगति कोयले एवं लोहे के उद्योग पर बहुत अधिक निर्भर करती थी इसलिए अंग्रेजों ने इन उद्योगों पर अधिक ध्यान दिया । सन् 1815 में हम्फ्री डेवी ने खानों में काम करने के लिए एक ‘ सेफ्टी लैप का आविष्कार किया हेनरी ने एक शक्तिशाली भट्टी विकसित करके लौड उद्योग को और अधिक बढ़ावा दिया । रेलवे के निर्माण से लौड उद्योग में तेजी आयी इस तरह कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगीकरण को गति दिया ।
3. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ? औद्योगीकरण ने कैसे उपनिवेशकर को जन्म दिया ?
Ans:- विकसित देशों द्वारा अविकसित देशों पर अधिकार कर उसकी सामाजिक आर्थिक , सांस्कृतिक एवं उसके शासन प्रबन्ध पर नियंत्रण कर लेने को ही उपनिवेशवाद कहते हैं । आरंभ में वहाँ के आर्थिक संसाधनों का उपयोग किया , परन्तु आगे चलकर वहाँ के राजनीतिक व्यवस्था पर भी अधिकार कर लिया यूरोपीय प्रजातियों ने एशिया और अफ्रीका पर आधिपत्य स्थापित किया औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप सर्वप्रथम उपनिवेशवाद का आरंभ हुआ के उद्योगों को कच्चा माल एवं वहाँ के कारखानों में निर्मित सामानों की बिक्री के लिए बाजार की आवश्यकता थी । जैसे – जैसे औद्योगीकरण की गति वैसे – वैसे उपनिवेशीकरण में तेजी आई । इंगलैंड के अतिरिक्त फ्रांस और जर्मनी ने भी अपने उपनिवेश स्थापित किए । उपनिवेशीकरण और औद्योगीकरण न साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया साम्राज्यवारी प्रवृत्ति विश्वयुद्धों का कारण बनी । प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध का यह एक प्रधान कारण था । दूसरे देशों के उपनिवेशों पर अधिकार करने की नीति ने प्रतिद्वंद्विता एवं संघर्ष को जन्म दिया । 20 वीं शताब्दी में उपनिवेशों में शोषण के विरुद्ध प्रतिक्रिया आरंभ हुई । इसी क्रम में एशिया में भारत ब्रिटेन के एक विशाल उपनिवेश के रूप में उभरा ।
4. औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालें ।
Ans:- औद्योगिकीकरण के प्रभाव से यहाँ के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए । ये परिवर्तन निम्नलिखित है –
(i) साम्राज्य – राष्ट्रवाद का विकास औद्योगिकीकरण के कारण भारी मात्रा में कच्चे माल तथा उत्पादों की खपत हेतु बाजार को आवश्यता था । उपनिवेशों में ये दोनों ही उपलब्ध थे । उपनिवेशों को होने साम्राज्यवाद को जन्म दिया ।
(ii) कुटीर उद्योगों का पतन बड़े – बड़े कारखानों की स्थापना से प्राचीन लघु एवं कुटीर उद्योग का पतन हो गया । कुटीर उद्योग में तैयार माल महंगा तथा कारखाने में उत्पादित सामान सस्ता था । नतीजा यह हुआ कि कुटीर उद्योग समाप्त होने लगे क्योंकि बाजार में उसकी माँग पट गयी थी ।
(iii) समाज में वर्ग विभाजन – औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप समाज में तीन वर्गों का उदय हुआ – पूँजीपति , बुर्जुआ तथा मजदूर वर्ग
(iv) स्लम पद्धति की शुरुआत – औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप नवोदित फैक्ट्री मजदूर वर्ग शहर में छोटे – छोटे घरों में रहने लगे । जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी । इस प्रकार स्लम पद्धति की शुरुआत हुई ।
(v) उद्योगों का विकास- औद्योगिकीकरण के कारण भारत में कारखानों की स्थापना एवं नये – नये यंत्रों का आविष्कार हुआ । विभिन्न उद्योगों से संबद्ध कारखाने खुले और उद्योगों का बड़े स्तर पर विकास हुआ । लोहा एवं इस्पात , कोयला , सीमेंट , चीनी , कागज , शीशा और अन्यः उद्योग स्थापित हुए जिनमें बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ ।
5. कुटीर उद्योग के महत्त्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- भारत में औद्योगिकीकरण ने कुटीर उद्योगों को काफी क्षति पहुँचाई , परन्तु इस विषम परिस्थिति में भी गाँवों में यह उद्योग फल – फूल रहा था जिसका लाभ आम जनता को मिल रहा था । स्वदेशी आंदोलन के समय कुटीर उद्योग के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता । महात्मा गाँधी के अनुसार लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है । कुटीर उद्योग उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन से , अत्यधिक संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने में तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने जैसे महत्त्व से जुड़ा है । सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान कुटीर उद्योगों द्वारा ही होता है । यह सामाजिक , आर्थिक प्रगति व क्षेत्रवार संतुलित विकास के लिए एक शक्तिशाली हथियार है । यह बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर को बढ़ाता है । कुटीर उद्योग में बहुत कम पूँजी की आवश्यकता होती है । कुटीर उद्योग में वस्तुओं के उत्पादन करने की क्षमता कुछ लोगों के हाथ में न रहकर बहुत से लोगों के हाथ में रहती है । कुटीर उद्योग जनसंख्या को बड़े शहरों में पलायन को रोकता है । कुटीर उद्योग गाँवों को आत्म – निर्भर बनाने का एक औजार है । औद्योगिकीकरण के विकास के पहले भारतीय निर्मित वस्तुओं का विश्वव्यापी बाजार था । भारतीय मलमल और छींट तथा सूती वस्त्रों की माँग पूरे विश्व में थी । ब्रिटेन में भारतीय हाथों से बनी हुई वस्तुओं को ज्यादा महत्त्व देते थे । हाथों से बने महीन धागों के कपड़े , तसर सिल्क , बनारसी तथा बालुचेरी साड़ियाँ तथा बुने हुए बॉडर वाली साड़ियाँ एवं मद्रास की लुंगियों की माँग ब्रिटेन के उच्च वर्गों में अधिक थी । चूँकि ब्रिटिश सरकार की नीति भारत में विदेशी निर्मित वस्तुओं का आयात एवं भारत के कच्चामाल के निर्यात को प्रोत्साहन देना था , इसलिए ग्रामीण उद्योगों पर ध्यान नहीं दिया गया । फिर भी स्वदेशी आंदोलन के समय खादी जैसे वस्त्रों की मांग ने कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया । आगे दो विश्वयुद्धों के बीच कुटीर उद्योगों द्वारा बनी वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी ।
6. औद्योगिकीकरण ने सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया ; कैसे ?
उत्तर- औद्योगिकीकरण ने न सिर्फ आर्थिक ढाँचे को ही प्रभावित किया , बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया । महात्मा गाँधी ने जब असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तो राष्ट्रवादियों के साथ – साथ अहमदाबाद एवं खेड़ा मिल के मजदूरों ने उनका साथ दिया । गाँधीजी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर देते थे । इसका कारण यह था कि कुटीर उद्योग को भारत में पुनर्जीवित किया जा सके । पूरे भारत में मिलों में काम करने वाले मजदूरों ने ‘ भारत छोड़ो ‘ आंदोलन को अपना समर्थन दिया । अतः , औद्योगिकीकरण जिसकी शुरुआत एक आर्थिक प्रक्रिया के तहत हुई थी । उसने भारत में राजनैतिक एवं सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया ।
5. औद्योगिकीकरण के कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर- औद्योगिकीकरण के कारण –
( i ) आवश्यकता आविष्कार की जननी ।
( ii ) नई – नई मशीनों का आविष्कार ।
( iii ) कोयले एवं लोहे की प्रचुरता ।
( iv ) फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत ।
( v ) सस्ते श्रम की उपलब्धता ।
( vi ) यातायात की सुविधा ।
( vii ) विशाल औपनिवेशिक स्थिति ।