Class 10 Social Science NCERT Solutions History in Hindi Chapter – 6. शहरीकरण एवं शहरी जीवन

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शहरीकरण एवं शहरी जीवन

1 . श्रमिक वर्ग का आगमन शहरों में किन परिस्थितियों के अंतर्गत हुआ ?

Ans:- आधुनिक शहरों में जहाँ एक ओर पूँजीपति वर्ग का अभ्युदय हुआ तो दूसरी ओर श्रमिक वर्ग का । शहरों में फैक्ट्री प्रणाली की स्थापना के कारण कृषक वर्ग जो लगभग भूमिविहीन कृषि वर्ग के रूप में थे , शहरों की ओर बेहतर रोजगार के अवसर को देखते हुए भारी संख्या में इनका पलायन हुआ । इस तरह शहरों में रोजगार की अपार संभावनाओं को देखते हुए गाँवों से शहरों की ओर श्रमिक वर्ग का आगमन हुआ ।

2. ग्रामीण तथा नगरीय जीवन के बीच किन्हीं दो भिन्नताओं का उल्लेख करें ।

Ans:- गाँवों एवं शहरों में सामाजिक जीवन मुख्यतः व्यवसाय में भिन्नता के आधार पर किया जाता है । ग्रामीण आबादी मुख्यत : कृषिजन्य क्रियाकलापों से संबद्ध होता है । इसके विपरीत शहरी आबादी मुख्यतः गैर – कृषि व्यवसायों , नौकरी , उद्योग तथा व्यापार में संलग्न रहती है ।

3. शहरों के उद्भव में मध्यम वर्ग की भूमिका किस प्रकार की रही ?

Ans:- शहरों के उद्भव ने मध्यम वर्ग को काफी शक्तिशाली बनाया । ये नए समाज के रूप में उभरे । इस समूह में बुद्धिजीवी , नौकरी पेशा वाले , राजनीतिज्ञ , चिकित्सक , वकील , शिक्षक , व्यापारी प्रमुख थे । व्यावसायिक वर्ग नगरों के विकास का कारण बना जिससे शहरों को नया सामाजिक – आर्थिक स्वरूप प्राप्त हुआ । बुद्धिजीवी एवं राजनीतिक वर्ग ने नया राजनीतिक – सामाजिक चिंतन दिया तथा विभिन्न आंदोलनों को दिशा एवं नेतृत्व प्रदान किया ।

4. यूरोपीय इतिहास में ‘ घेटो ‘ का क्या अर्थ है ?

Ans:- ‘ घेटो ‘ शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप में यहूदी बस्तियों के लिए किया गया । वर्तमान समय में यह विशिष्ट धर्म , नृजाति , जाति अथवा समान पहचान वाले लोगों के एक साथ रहने को बताता है । यह सामुदायिक आवास का परिचायक है ।

5. शहर किस प्रकार के क्रियाओं के केन्द्र होते हैं ?

Ans:- शहर विभिन्न प्रकार की क्रियाओं के केन्द्र होते हैं , जैसे — रोजगार , शिक्षा , स्वास्थ्य , व्यापार , वाणिज्य , यातायात आदि । शहर गतिशील अर्थव्यवस्था जो मुद्रा प्रधान होती है उसके भी केन्द्र होते हैं । शहर राजनीतिक प्राधिकार का भी एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र होता है ।

6 . आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा नगरीय व्यवस्था के दो प्रमुख आधार क्या है ?

Ans:- आर्थिक तथा प्रशासनिक संदर्भ में ग्रामीण तथा नगरीय व्यवस्था के प्रमुख आधार हैं –

(i) जनसंख्या का घनत्व- शहरों में जनसंख्या का घनत्व ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक होता है । शहरों में मकान सुनियोजित ढंग से बनते हैं ; ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता ।

(ii) अर्थव्यवस्था — ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित होती है , जबकि शहरी अर्थव्यवस्था मुद्रा प्रधान और अधिक गतिशील होती है । शहर व्यापार , उद्योग व नौकरी पेशा में लगे लोगों का केन्द्र होता है ।

7 . किन तीन प्रक्रियाओं के द्वारा आधुनिक शहरों की स्थापना निर्णायक रूप से हुई ?

Ans:- जिन तीन ऐतिहासिक प्रक्रियाओं ने आधुनिक शहरों की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई वे निम्नलिखित हैं –

 (i) औद्योगिक पूँजीवाद का उदय ,

 (ii) विश्व के विशाल भू – भाग पर औपनिवेशिक शासन की स्थापना तथा

 (iii) लोकतांत्रिक आदर्शों का विकास ‘

8 . समाज का वर्गीकरण ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में किस पित्रता के आधार पर किया जाता है ?

उत्तर- समाज का वर्गीकरण ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में आर्थिक आधार पर किया जाता है । गाँव में रोजगार की संभावनाएँ काफी कम होती हैं जबकि शहरों की ओर व्यक्ति का पलायन इसलिए होता है कि शहरों में रोजगार की अपार संभावनाएँ होती हैं । शहर व्यक्ति को संतुष्ट करने के लिए अंतहीन सुविधाएँ प्रदान करता  है ।

9. व्यावसायिक पूँजीवाद ने किस प्रकार नगरों के उद्भव में अपना योगदान दिया ?

उत्तर – नगरों के उद्भव का एक प्रमुख कारण व्यावसायिक पूँजीवाद के उदय के साथ संभव हुआ । व्यापक स्तर पर व्यवसाय , बड़े पैमाने पर उत्पादन , मुद्राप्रधान अर्थव्यवस्था , शहरी अर्थव्यवस्था जिसमें काम के बदले वेतन , मजदूरी का नगद भुगतान एक गतिशील एवं प्रतियोगी अर्थव्यवस्था , स्वतंत्र उद्यम , मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति , मुद्रा बैंकिंग , साख का विनिमय , बीमा अनुबंध , कम्पनी साझेदारी , ज्वाएंट स्टॉक , एकाधिकार आदि इस व्यावसायिक पूँजीवादी व्यवस्था की विशेषता रही है । इन विशेषताओं ने ही नगरों के उद्भव में अपना योगदान दिया ।

10. नगरों में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अल्पसंख्यक है ऐसी मान्यता क्यों बनी है ?

उत्तर- नगरों में विशेषाधिकार प्राप्त वे वर्ग होते हैं जो सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते हैं । यह सत्य है कि ये सामाजिक और आर्थिक विशेषाधिकार कुछ ही व्यक्तियों को प्राप्त थे जो अल्पसंख्यक वर्ग हैं तथा जो पूर्णरूपेण उन्मुक्त तथा संतुष्ट जीवन जी सकते हैं । चूँकि अधिकतर व्यक्ति जो शहरों में रहते थे बाह्यताओं में ही सीमित थे तथा उन्हें सापेक्षिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी । एक तरफ संपन्नता थी तो दूसरी ओर गरीबी , एक तरफ बाह्य चमक – दमक थी तो दूसरी ओर धूल और अंधकार । एक ओर अवसर था तो दूसरी ओर निराशा थी ।

11. नागरिक अधिकारों के प्रति एक नई चेतना किस प्रकार के आंदोलन या प्रयास से बनी ?

उत्तर- शहरी सभ्यता ने पुरुषों के साथ महिलाओं में भी व्यक्तिवाद की भावना को उत्पन्न किया एवं परिवार की उपादेयता और स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया । महिलाओं के मताधिकार आंदोलन या विवाहित महिलाओं के लिए संपत्ति में अधिकार आदि आंदोलनों के माध्यम से महिलाएँ लगभग 1870 ई . के बाद से राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाईं । शहरों की बढ़ती हुई आबादी के साथ 19 वीं शताब्दी में अधिकतर आंदोलन जैसे  चार्टिड्ग ( सभी वयस्क पुरुष के लिए चलाया गया । आंदोलन ) , दस घंटे का आंदोलन ( कारखानों में काम के घंटे निश्चित करने के लिए चला आंदोलन ) आदि ने नागरिक अधिकारों के प्रति एक नई चेतना को विकसित किया ।

12. नगरीय जीवन एवं आधुनिकता एक – दूसरे से अभिन्न रूप से कैसे जुड़े हुए हैं ?

उत्तर- शहरों का सामाजिक जीवन आधुनिकता के साथ अभिन्न रूप से जोड़ा जा सकता है । वास्तव में यह एक – दूसरे की अंतअंभिव्यक्ति है । शहरों को आधुनिक माना जाता है । शहर व्यक्ति को सन्तुष्ट करने के लिए अंतहीन व्यक्ति का प्रभाव संभावनाएँ प्रदान करता है ।

 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. गाँव के कृषिजन्य आर्थिक क्रियाकलापों की विशेषता को दर्शाएँ |

Ans:- ग्रामीण आबादी का बहुत बड़ा भाग कृषिजन्य आर्थिक क्रियाकलापों से जुड़ा रहता है । खेती इनकी आजीविका का मुख्य साधन है । अधिकांश वस्तुएं कृषि उत्पाद से जुड़ी होती है जो इनकी आय का प्रमुख स्रोत होती है । गाँवों में अनेक लघु एवं कुटीर उद्योग तथा शिल्पकलाओं में भी लोग संलग्न भ हैं जिससे स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । गाँव की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था मूलतः जीवन – निर्वाह अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर आधारित होती है ।

2. शहरों ने किन नई समस्याओं को जन्म दिया ?

Ans:- शहरीकरण के कारण अनेक नई समस्याओं का जन्म हुआ ।

(i) बढ़ती जनसंख्या ने शहरों में नई – नई समस्याओं को जन्म दिया ।

(ii) शहरों में आवास , यातायात , स्वास्थ्य , शिक्षा , बेरोजगारी संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हुई ।

(iii) शहरीकरण से वर्ग – विभेद गहरा हुआ । यह सामाजिक सिद्धांतों के विपरीत था ।

(iv) शहरीकरण ने पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला । गंदगी और धूल से पर्यावरण दूषित हो गया ।

3. शहरीकरण की प्रक्रिया में व्यवसायी वर्ग , मध्यम वर्ग एवं मजदूर वर्ग की भूमिका की चर्चा करें ।

Ans:- शहरीकरण की प्रक्रिया से समाज में विभिन्न वर्गों का अस्तित्व आया । शहरीकरण की प्रक्रिया में इन वर्गों की भूमिका क्रमानुसार इस प्रकार • व्यवसायी वर्ग – शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण व्यापार तथा वाणिज्य का विकास हुआ । नये – नये व्यवसायों के कारण विभिन्न व्यवसायी वर्ग का उदय हुआ । चूँकि व्यापार शहरों में ही होते थे इसलिए शहरों में हो विभिन्न व्यवसायी वर्ग अस्तित्व में आए । शहरों में यह व्यवसायी वर्ग एक नये सामाजिक शक्ति के रूप में उभरकर आए । मध्यम वर्ग – शहरीकरण के परिणामस्वरूप समाज के एक नये वर्ग मध्यम वर्ग का उदय हुआ । यह एक शिक्षित वर्ग था जो विभिन्न पेश में रहकर भी औसतन एक समान आय प्राप्त करने वाला वर्ग के रूप में उभरकर सामने आया एवं बुद्धिजीवी वर्ग कहलाया । यह मध्यम वर्ग शहरों में विभिन्न रूपों में कार्यरत थे जैसे — शिक्षक , वकील , चिकित्सक , इंजीनियर , क्लर्क , एकाउंटेंट्स आदि । समाज पर इनका व्यापक प्रभाव था । ये राजनीतिक आंदोलन में भाग लेते थे एवं इसे नेतृत्व भी प्रदान करते थे । मजदूर वर्ग शहरीकरण की प्रक्रिया ने समाज में जहाँ एक और वर्ग को और पूँजीपति वर्ग को जन्म दिया वहीं दूसरी ओर श्रमिक या मजदूर भी । कारखानेदारी प्रथा से शहरों में श्रमिक वर्ग का भी उदय और विकास हुआ ये मजदूर वर्ग संगठित होकर अपना संगठन बनाये तथा अपनी मांगों के समर्थन में समय – समय पर हड़ताल भी किए । इस प्रकार हड़ताल श्रमिक आंदोलन आधुनिक शहरों की विशेषता बन गई । भूमिका रही है । इसलिए , शहरीकरण के उदय और विकास में इन तीनों वर्गों की अहम भूमिका रही है |

4. शहरी जीवन में किस प्रकार के सामाजिक बदलाव आए ?

उत्तर- शहरों का सामाजिक जीवन आधुनिकता के साथ अभिन्न रूप से जोड़ा जाता है । वास्तव में यह एक – दूसरे की अंतअभिव्यक्ति है । शहरों को आधुनिक व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है । सघन जनसंख्या के यह स्थल जहाँ कुछ मनीषियों के लिए अवसर प्रदान करता है वहीं यथार्थ में यह अवसर केवल कुछ व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है । परंतु इन बाध्यताओं के बावजूद शहर ‘ समूह पहचान ‘ के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हैं जो कई कारणों से जैसे प्रजाति , धर्म , नृजातीय , जाति प्रदेश तथा समूह शहरी जीवन का पूर्ण प्रतिनिधित्व करते हैं । वास्तव में कम स्थान में अत्यधिक लोगों का जमाव , पहचान को और तीव्र करता है तथा उनमें एक ओर सह – अस्तित्व की भावना उत्पन्न करता है तो दूसरी ओर प्रतिरोध का भाव । अगर एक ओर सह – अस्तित्व की भावना है तो दूसरी ओर पृथक्करण की प्रक्रिया । शहरों में नए सामाजिक समूह बने । सभी वर्ग के लोग बड़े शहरों की ओर बढ़ने लगे । शहरी सभ्यता ने पुरुषों के साथ महिलाओं में भी व्यक्तिवाद की भावना को उत्पन्न किया एवं परिवार की उपादेयता और स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया । जहाँ पारिवारिक सम्बन्ध अब तक बहुत मजबूत थे वहीं ये बंधन ढीले पड़ने लगे महिलाओं के मताधिकार आंदोलन या विवाहित महिलाओं के लिए सम्पत्ति में अधिकार आदि आंदोलनों के माध्यम से महिलाएँ लगभग 1870 ई . के बाद से राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले पाईं । समाज में महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन आए । आधुनिक काल में महिलाओं ने समानता के लिए संघर्ष किया औ समाज को कई रूपों में परिवर्तित करने में सहायता दी । ऐतिहासिक परिस्थितिय महिलाओं के संघर्ष के लिए कहीं सहायक सिद्ध हुई हैं तो कहीं बाधक । उदाहर के लिए , द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पाश्चात्य देशों में महिलाओं ने कारखानों में का में महिलाओं को संवेदनशील बनाया । शहरी जीवन से समाज में नए – नए वर्गों का उदय हुआ । व्यवसायी वर्ग , मध्यम वर्ग , पूँजीपति वर्ग तथा श्रमिक वर्ग ।

 5. शहरों के विकास की पृष्ठभूमि एवं उसकी प्रक्रिया पर प्रकाश डालें ।

उत्तर- शहरीकरण का अर्थ है किसी गांव के शहर या कस्बे के रूप में विकसित होने की प्रक्रिया । शिक्षा , स्वास्थ्य , यातायात , रोजगार आदि सुविधाएँ शहरों में उन्नत अवस्था में होती हैं । गाँव से शहरों का विकास एक वृहत् प्रक्रिया है जो कई शताब्दियों पर फैली है । समाजशास्त्री के अनुसार नगरीय जीवन तथा आधुनिकता एक – दूसरे के पूरक हैं और शहर को आधुनिक व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है । शहर व्यक्ति को संतुष्ट करने के लिए अंतहीन संभावनाएँ प्रदान करता है । आधुनिक काल से पूर्व व्यापार एवं धर्म शहरों की स्थापना के महत्त्वपूर्ण आधार थे , ऐसे में वे क्षेत्र जो मुख्य व्यापार मार्ग अथवा पतन और बन्दरगाहों के किनारे बसे थे । कुछ एक क्षेत्र जो धार्मिक स्थल के रूप में भारी संख्या में भक्तों को आकर्षित करते थे तथा ये धार्मिक स्थल नगर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ भी करते थे । मध्यकालीन सामंती सामाजिक संरचना एवं मध्यकालीन जीवन – मूल्य तेरहवीं शताब्दी तक अपने शिखर पर थे । नये प्रतिरोध के पश्चात् भी यह व्यवस्था लगभग सोलहवीं शताब्दी तक बनी रही । इस व्यवस्था ने नई एवं बाह्य शक्तियों को जो इसे परिवर्तित करना चाहती थीं यथासंभव नियंत्रित रखा , रोका और अपने में समाहित किया । अंततः , एक नई सामाजिक एवं राजनीतिक संरचना विकसित हुई जो अपनी परम्पराओं एवं स्वरूप के लिए प्राचीन परिपाटी के प्रति ऋणी तो थी किन्तु नवीन राजनीतिक एवं आर्थिक अवधारणाओं को स्वीकार करती थी जो अधिक लौकिक थी एवं जिज्ञासु प्रवृत्ति से प्रेरित थी । इसी पृष्ठभूमि में शहरी जीवन का पुनः उदय हुआ । कालांतर में ऐसे शहरों का विस्तार हुआ जिसमें मध्य परकोटों का निर्माण हुआ । ये शहर तथा इनके व्यस्त उद्यमी नागरिक भविष्य के दृष्टिगोचर एवं अग्रदूत थे । ये शहर नये राजमार्गों से जोड़े गये तथा इनके बीच सड़क एवं जलमार्गों द्वारा व्यापार होने लगा । शहरीकरण की प्रक्रिया बहुत लम्बी रही है लेकिन आधुनिक शहर के उदय का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष पुराना है । तीन ऐतिहासिक प्रक्रियाओं ने आधुनिक शहरों की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई । पहला , औद्योगिक पूँजीवाद का उदय , दूसरे विश्व के विशाल भूभाग पर औपनिवेशिक शासन की स्थापना और तीसरा लोकतांत्रिक आदर्शों का विकास । इस तरह ग्रामीण एवं सामंती व्यवस्था से हटकर एक प्रगतिशील शहरी व्यवस्था की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ी । औद्योगिकीकरण ने भी शहरीकरण के स्वरूप को काफी प्रभावित किया ।

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