Class 10 Social Science NCERT Solutions History in Hindi Chapter – 8. प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद 

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प्रेस-संस्कृति एवं राष्ट्रवाद 

प्रश्न.1 .  भारतीयों द्वारा वनॉक्यूलर प्रेस एक्ट का विरोध क्यों किया गया ?

उत्तर :- लार्ड लिटन ने 1878 ई ० में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लाकर भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया । इसका उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था । अधिनियम के अनुसार भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकते थे जो अंग्रेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो । सरकार ऐसा समाचार छापने वाले अखबारों के संपादकों से बाण्ड लिखवा सकती थी तथा उनसे जमानत भी ले सकती है । इस कानून द्वारा प्रेस पर कठोर नियंत्रण लगाया गया । इस प्रतिबंध से बचने के लिए प्रकाशकों को अपने लेखों की समीक्षा करवानी आवश्यक थी । भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस अधिनियम का कड़ा विरोध किया ।

प्रश्न.2. छापाखाना यूरोप कैसे पहुंचा ?

उत्तर :- 1295 में मार्कोपोलो जब चीन से इटली वापस आया तो वह अपने साथ चीन में प्रचलित वुड ब्लॉक छपाई की तकनीक लेता आया । इससे हस्तलिखित पांडुलिपियों के स्थान पर वुड ब्लॉक की छपाई की तकनीक विकसित हुई । इटली से आरंभ होकर यह तकनीक यूरोप के अन्य भागों में भी फैल गई । उत्तर :-

प्रश्न.3. पाण्डुलिपि क्या है ? इसकी क्या उपयोगिता है ?

उत्तर :- छापाखाना के पहले भोजपत्र या हाथ से बने कागज पर हाथ से सुन्दर अक्षरों में लिखकर पुस्तकें तैयार की जाती थीं । हैं । इनके किनारों को सुन्दर रंगीन चित्रों से सुसज्जित किया जाता था । इनके पन्नों को सिलकर जिल्द चढ़ा दी जाती थी जिससे वे सुरक्षित रहती थी । पाण्डुलिपि बनाने की विधि कठिन और महंगी थी । संस्कृत , पाली , प्राकृत , क्षेत्रीय भाषाओं , अरबी तथा फारसी में ऐसी असंख्य पाण्डुलिपियाँ तैयार की गई । पाण्डुलिपियों की लिखावट कठिन होने तथा प्रचुरता से उपलब्ध नहीं होने के कारण यह आम आदमी के पहुँच से बाहर होती थी ।  

प्रश्न.4. गुटेनवर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे किया ?

उत्तर :- गुटेनबर्ग ने जैतून पेरने की मशीन को आधार बनाकर प्रिंटिंग प्रेस विकास किया । इस मशीन में पंच की सहायता से लंबा हैंडल लगा होता था । पेच को घुमाकर प्लाटेन को गौले कागज पर दबाया जाता था । साँचे का उपयोग कर अक्षरों की धातु की आकृतियों को ढाला गया । इन टाइपों को घुमाने गई । इस प्रकार मुद्रण यंत्र का विकास हुआ ।

प्रश्न.5. स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका पर प्रकाश डालें ।

उत्तर :- स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका प्रभावशाली रही है । यह राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक और अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास में प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है । यह अन्तर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय , प्रादेशिक , क्षेत्रीय घटनाओं , सरकारी नीतियों , खेल – कूद तथा मनोरंजन की सूचना देने वाला प्रमुख माध्यम है । यह सरकार पर प्रभावशाली नियंत्रण रखता है तथा लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ‘ के रूप में कार्य करता है ।

प्रश्न.6. इक्वीजीशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?

उत्तर:- छापाखाना के आविष्कार से बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक हुआ । अब अपेक्षाकृत कम पढ़े – लिखे लोग धर्म की अलग – अलग व्याख्याओं से परिचित हुए । कृषक से लेकर बुद्धिजीवी तक बाइबिल की नई – नई व्याख्या करने लगे । ईश्वर एवं सृष्टि के बारे में रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के विपरीत विचार आने से कैथोलिक चर्च क्रुद्ध हो गया और तथाकथित धर्म – विरोधी विचारों को दबाने के लिए इक्वीजीशन शुरू किया जिसके माध्यम से विरोधी विचारधारा के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया गया |

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नः

प्रश्न.1. राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर :- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्भव एवं विकास में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका रही । इसने राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक एवं अन्य मुद्दों को उठाकर उन्हें जनता के समक्ष लाकर उनमें राष्ट्रवादी भावना का विकास किया तथा लोगों में जागृति ला दी ।

            प्रेस में प्रकाशित लेखों और समाचार पत्रों से भारतीय औपनिवेशिक शासन के वास्तविक स्वरूप से परिचित हुए । वे अंग्रेजों की प्रजातीय विभेद और शोषण की नीतियों से परिचित हुए । समाचार पत्रों ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के घिनौने मुखौटा का पर्दाफाश कर दिया तथा इनके विरुद्ध लोकमत को संगठित किया । जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का दायित्व समाचार पत्रों ने अपने ऊपर ले लिया । समाचार पत्रों ने देश में चलने वाले विभिन्न आंदोलनों एवं राजनीतिक कार्यक्रमों से जनता को परिचित कराया । कांग्रेस के कार्यक्रम हो या उसके अधिवेशन , बंग – भंग आंदोलन अथवा असहयोग आंदोलन , नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन समाचार पत्रों द्वारा लोगों को इनमें भाग लेने की प्रेरणा मिलती थी । कांग्रेस की भिक्षाटन की नीति का प्रेस ने विरोध किया तथा स्वदेशी और बहिष्कार की भावना को बढ़ावा देकर राष्ट्रवाद का प्रसार किया । इस प्रकार समाचार पत्रों ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दी । तिलक , ऐनीबेसेंट , महात्मा गाँधी और अन्य प्रभावशाली नेता प्रेस के माध्यम से ही जनता तक पहुँच सके । समाचार पत्रों के माध्यम से आम जनता भी प्रेस और राष्ट्रवाद से जुड़ गयी ।  

प्रश्न.2. मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर :-  मुद्रण क्रांति का विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा । मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिन्दगी ही बदल दी । मुद्रण क्रांति के कारण छापाखानों की संख्या में भारी वृद्धि हुई । जिसके परिणामस्वरूप पुस्तक निर्माण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई ।

            मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के हर तबकों के बीच पहुँच पायी किताबों की पहुँच आसान होने से पढ़ने की एक नई संस्कृति विकसित हुई । एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ तथा पढ़ने के कारण उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ । पठन – पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार – प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वार खुला । धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पिच्चानवें स्थापनाएँ लिखी । फलस्वरूप चर्च में विभाजन हुआ और प्रोटेस्टेंटबाद की स्थापना हुई । इस तरह छपाई से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाब बड़ी तेजो से आम लोगों तक हुआ । वैज्ञानिक एवं दार्शनिक बातें भी आम जनता के पहुँच से बाहर नहीं रही । न्यूटन , टामसपेन , वाल्तेयर और रूसो की पुस्तकें भारी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगी ।

            मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश यूरोप में फैल चुका था । लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने हेतु नैतिक साहस का संचार होने लगा था । फलस्वरूप मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया ।

प्रश्न.3. भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें ।

उत्तर :- 19 वीं शताब्दी में भारत में समाचार पत्रों के प्रकाशन में तेजी आई , परंतु अब तक इसका प्रकाशन और वितरण सीमित स्तर पर होता रहा । इसका एक कारण यह था कि सामान्य जनता एवं समूढ कुलीन और सामंत वर्ग राजनीति में रुचि नहीं लेता था । इसके बावजूद भारतीय समाचार पत्रों ने सामाजिक – धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया । समाचार पत्रों में न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों , धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया |

            यद्यपि 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में वृद्धि हुई । परंतु ये प्रजातीय आधार पर दो वर्गों ऍग्लो – इंडियन और भारतीय प्रेस में विभक्त हो गई । इंडियन प्रेस ने सरकार के समर्थन में रुख अपनाया । इसे सरकारी समर्थन और संरक्षण प्राप्त था । ऐंग्लो – इंडियन प्रेस की अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे । यह अंग्रेजों के ‘ फूट डालो और शासन करो ” की नीति को बढ़ावा देता था तथा सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देनेवाले प्रयासों का विरोध करता था । इसका एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश राज के प्रति वफादारी की भावना का विकास करना था । इसके विपरीत भारतीय प्रेस ने अंग्रेजी सरकारी नीतियों की आलोचना की । भारतीय दृष्टिकोण के ज्वलंत प्रश्नों ( सामाजिक – राजनीतिक ) को रखा तथा भारतीयों में राष्ट्रीयता एवं एकता की भावना जागृत करने का प्रयास किया । ऐसे समाचार पत्रों में ‘ अमृत बाजार पत्रिका , ‘ ‘ हिन्दू पैट्रियट ‘ एवं ‘ सोमप्रकाश ‘ के नाम प्रमुख हैं । इनके पत्रिकाओं में राजा राममोहन राय , दादाभाई नौरोजी , बाल गंगाधर तिलक , महात्मा गाँधी आदि के लेखों से राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिली ।

प्रश्न.4 . भारतीय प्रेस के विकास में ईसाई धर्म प्रचारकों के योगदान का मूल्यांकन करें ।

उत्तर :- भारतीय प्रेस के विकास में ईसाई धर्म प्रचारकों का बड़ा योगदान था । 16 वीं सदी के मध्य में गोवा में पुर्तगाली धर्मप्रचारकों , जेसुइटों ने पहली बार छापाखाना खोला । उनलोगों ने स्थानीय लोगों से कोंकणी भाषा सीखकर उसमें अनेक पुस्तकें छापी । 16 वीं शताब्दी से कैथोलिक पादरियों ने तमिल भाषा में पहली पुस्तक कोचीन में प्रकाशित की । इसी समय से भारत में पुस्तकों की छपाई ने गति पकड़ी । 1674 ई . तक कोंकणी और कन्नड़ में लगभग अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका था । इस धर्म प्रचारक भी पुस्तकों की छपाई में पीछे नहीं रहे । उनलोगों ने पुरानी पुस्तकों का अनुवाद तमिल भाषा की किताबें छापी । इस प्रकार भारत में पुस्तकों का प्रकाशन यूरोपीय धर्म प्रचारकों द्वारा आरंभ किया गया । अतः भारतीय प्रेस के विकास में ईसाई धर्म प्रचारकों का विशेष योगदान है ।

प्रश्न.5. मुद्रण क्रांति के बहुयामी प्रभाव क्या थे ? विवरण दें ।

उत्तर :- मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिन्दगी बदल दी । आम लोगों का नुक सूचना ज्ञान , संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ । मुद्रण क्रांति के बहुयामी प्रभाव समाज धर्म , संस्कृति एवं बौद्धिक विकास में दृष्टिगांवर हुए । मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी वर्गों तक पहुंच गई किताब के आसान होने से पढ़ने की नई संस्कृति विकसित हुई । एक नया पाठक वर्ग तैयार हुआ साक्षरता बढ़ाने हेतु पुस्तकों को रोचक तस्वीरों , सोकगीत और लोक – कथाओं से सजाया गया । पहले जो लोग सुनकर जानार्जन करते थे वे अब पढ़कर भी कर सकते थे । इससे उनके अन्दर तार्किक शक्ति का विकास हुआ । पठन – पाठन का व्यापक प्रचार – प्रसार हुआ । मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश फैलने लगा । लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने के लिए नैतिक साहस का संचार होने लगा था । इसने वाद – विवाद को नई संस्कृति को जन्म दिया । धर्म और आस्था को तार्किकता की कसौटी पर कसने से मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुए । इस तरह की नई सार्वजनिक दुनिया ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया ।

प्रश्न.6. लॉर्ड लिटन ने राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाया । कैसे ?

उत्तर :- लॉर्ड लिटन की प्रतिगामी नीतियों ने राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाया । देशी भाषाओं के समाचार पत्र को नियंत्रण में लाने के लिए लॉर्ड लिटन ने 1878 में वर्नाक्यूलर ऐक्ट पारित किया । देशी समाचार पत्र खुलकर औपनिवेशिक शासन के शोषणकारी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रवादी भावना को उभारा । इसी प्रकार उसने आर्म्स ऐक्ट ( 1879 ) द्वारा भारतीयों को हथियार रखने पर प्रतिबंध लगा दिया । सिविल सेवा में प्रवेश की आयु भी उसने घट दी । भुखमरी और अकाल के समय में भव्य दिल्ली दरबार का आयोजन कर उसने भारतीयों को अपमानित किया ।

प्रश्न.7. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें । यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुंचा ?

उत्तर :- लेखन समर्गी के आविष्कार के पूर्व मानव चट्टान तथा गोफाओ में अनुभाओ एवं प्रसंगों के खोदाई करके चिचिर्ट करता था तथा मिट्टी की टिकियो का उपयोग करता था । 105 ई ० में हास्-प्लाई-लुन (चीनी नागरिक ) एवं मलमल की पट्टियों से कागज बनाया । फलस्वरूप , कागज लेखन एवं चित्रकला का एक साधन बन गया । मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन , जापान और कोरिया में विकसित हुई । लगभग इसकी शुरुआत 594 ई ० में लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम की गई । 760 ई ० तक इसकी लोकप्रियता चीन और जापान में काफी बढ़ गई । ब्लॉक प्रिंटिंग का उपयोग अब पुस्तकों के पृष्ठ बनाने में होने लगा । लगभग 10 वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक ब्लॉक प्रिंटिंग की प्रक्रिया द्वारा मुद्रा – पत्र भी छापे गए । से शुरू मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है । 1041 ई . में एक चीनी व्यक्ति पि – शेंग ने मिट्टी की मुद्रा बनाए । इन अक्षर मुद्रों को संयोजन कर छाप लिया जा सकता था । बार – बार अलग करके इसे संयोजित भी किया जा सकता था इस पद्धति ने ब्लॉक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया । धातु की मुवेबल टाइपों 13 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य कोरिया में छापी गई । यद्यपि मुवेबल टाइपों द्वारा मुद्रण कला का आविष्कार तो पूरब में ही हुआ , परन्तु इस कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ । लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होनेवाली मुद्रण कला समर कन्द , पर्शिया – सीरिया मार्ग से ( रेशममार्ग ) व्यापारियों द्वारा यूरोप , सर्वप्रथम रोम में प्रविष्ट हुआ । 13 वीं सदी के अंत में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप पहुँचे । रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम होने के कारण लकड़ी तथा धातु के बने मूवेबल टाइपों का प्रसार तेजी से हुआ । कागज बनाने की कला 11 वीं सदी में पूरब से यूरोप पहुँची तथा 1336 ई ० में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई । इसी काल में शिक्षा के प्रसार , व्यापार एवं मिशनरियों की बढ़ती गतिविधियों से सस्ती मुद्रित सामग्रियों की माँग तेजी से बढ़ी । इस माँग की पूर्ति के लिए तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की आवश्यकता थी जिसे ( 1430 के दशक में ) स्ट्रेसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने पूरा कर दिखाया । गुटेनबर्ग ने आवश्यकता के अनुसार मुद्रण स्याही भी बनायी तथा हैण्डप्रेस का प्रथम बार मुद्रण कार्य सम्पन्न करने में प्रयोग किया ।

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