10th Non Hindi Question

Class 10th Non Hindi Thes ठेस लघु उत्तरीय प्रश्न , Non Hindi Subjective Question

Class 10th Non Hindi Thes ठेस , Non Hindi Subjective Question

लघु उत्तरीय प्रश्न (ठेस)

Class 10th Non Hindi

1.  गाँव के किसान सिरचन को क्या समझाते थे ?

उत्तर-सिरचन एक कुशल कारीगर था। एक समय था कि लोग उसकी कारीगरी के कायल थे। लेकिन खेती-बारी में उसका मन नहीं लगता। दूसरे मजदूर खेत पहुँचकर एक-तिहाई काम कर चुके हैं तब सिरचन पगडंडी पर तौल-तौलकर पाँव रखता हुआ धीरे-धीरे पहुँचता है। इसलिए गाँव के किसान सिरचन को बेकार ही नहीं ‘बेगार समझते हैं।

2. सिरचन को पान का बीड़ा किसने दिया ?

उत्तर-सिरचन को पान का बीड़ा मानू दीदी ने दिया था। मँझली भाभी के कटुवचन के कारण सिरचन को ठेस लगती है। इसी चोट को कम करने के लिए मानू दीदी पान का बीड़ा देते हुए बोली काम-काज का घर है, पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बात करेंगे। तुम किसी के बात पर ध्यान मत दो।

3. ठेस कहानी के विभिन्न पात्रों के नाम लिखिए।

उत्तर -ठेस कहानी के प्रमुख पात्र हैं— सिरचन, मानू दीदी, मँझली भाभी, बड़ी भाभी, चाची, लेखक की माँ आदि।

4.सिरचन कैसा व्यक्ति था?

उत्तर –सिरचन एक प्रसिद्ध हस्त कारीगर था। उसकी बनायी गयी चीजों की बड़ी माँग थी। सिरचन एक कुशल कारीगर के साथ-साथ स्वाभिमानी कलाकार एवं

संवेदनशील व्यक्ति था। काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी कि गेहुँअन साँप की तरह फुंफकार उठता। सिरचन मुँहजोर है कामचोर नहीं। वह स्वादिष्ट भोजन और चटपटे व्यंजन का प्रेमी है।

5. रेलगाड़ी पर बैठी मानू को सिरचन ने अपनी ओर से कौन से सौगात दिये?

उत्तर –रेलगाड़ी के खिड़की के पास अपने पीठ पर लदे हुए बोझ को उतारते हुए, मानू दीदी से कहता है यह मेरी ओर से है। इसमें सब चीज है दीदी।शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसानी कुश की।

6. सिरचन के सौगात को किसने खोला, वह कैसा था?

उत्तर –सिरचन के सौगात को लेखक ने खोला। सिरचन का सौगात अद्भूत था । ऐसी कारीगरी ऐसी बारीकी रंगीन सुतलियों के फँदों का ऐसा काम जिसे लेखक ने पहली बार देखा था।

7. सिरचन किस तरह की कारीगरी करता था?

उत्तर –सिरचन जाति का कारीगर था। एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर जतन से उसकी कुच्ची बनाता। फिर, कुच्चियों को रँगने से लेकर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त। मोथी घास और पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोर के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूँज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के काम सिरचन कर कारीगर बन गया था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. सिरचन चिक और शीतलपाटी स्टेशन पर ले जाकर मानू को देता है।इससे उसकी किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर सिरचन एक स्वाभिमानी एवं संवेदनशील कलाकार है। वह स्नेह का भूखा है, रुपये-पैसों का नहीं। मँझली भाभी के कटुवचन से आहत होकर मानू दीदी के लिए चिक और शीतलपाटी बनाना छोड़ देता है। बाद में उसे महसूस होता है, मानू दीदी यदि बिना इन सामानों के ससुराल चली जाती है। तो उसे अपमानित होना पड़ेगा।

सिरचन एक कुशल कारीगर के साथ-साथ संवेदनशील और व्यावहारिक इंसान था।वह मानू दीदी को निराश नहीं करना चाहता था। इसलिए गाड़ी खुलने से पहले सारा सामान स्टेशन पहुँचा देता है। इससे स्पष्ट होता है एक सफल कारीगर सिरचन अपनी कला को महत्त्व देते हुए स्वनिर्मित वस्तुओं का उपहार देकर आत्मीयता का अनोखा परिचय देता है। यही सिरचन के गुण और स्वभाव की विशेषता है।

2. ‘ठेस’ शीर्षक कहानी में कौन-सा पात्र आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर – ‘ठेस’ शीर्षक कहानी में मुझे सबसे अच्छा पात्र सिरचन लगा क्योंकि वह मानवीय गुणों से युक्त स्वाभिमानी कलाकार है। वह भाव का भूखा है, धन का नहीं। वह जिस काम को अपने हाथ में लेता, उसे पूरी तन्मयता से करता है। मानू दीदी के लिए शीतलपाटी और चिक बनाते समय मँझली भाभी के कटुवचन से एक कलाकार के दिल को ठेस लगती है।

वह क्रोधित हो, काम अधुरा छोड़कर चला जाता है क्योंकि संवेदनशील और स्वाभिमानी कलाकार है। सिरचन मानू दीदी को निराश नहीं करना चाहता था इसलिए उसने सारे सामान को ससुराल जाते समय स्टेशन पर पहुँचा देता है। इसके लिए मानू दीदी मोहर छापवाली धोती का दाम निकालकर देने लगी। सिरचन ने जीभ को दाँत से काटकर, दोनों हाथ जोड़ दिए। इससे स्पष्ट होता है सिरचन एक संवेदनशील मानवीय गुणों से युक्त दक्ष कलाकार है।

3. कहानी के किन-किन प्रसंगों से ऐसा प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था। लगभग 100 शब्दों में उल्लेख कीजिए।

उत्तर – सिरचन चिक, शीतलपाटी आदि बनाने का दक्ष कारीगर था। कुशल कारीगरी के कारण गाँव में उसकी बड़ी पूछ भी और कारीगरी में उसकी कोई सानी नहीं थी। बड़े-बड़े बाबू लोग उसकी खुशामद करते थे।  जब सिरचन अपने काम में मग्न रहता था तो उसे खाने पीने की सुध नहीं रहती थी। इसकी तन्मयता में बाधा पड़ा कि गेहूँअन सौंप की तरह फुफकार उठता।

इसी प्रकार चिक बनाने के क्रम में वह मग्न था, सिरचन को जलपान में चिउरा तथा गुड़ का एक सुखा ईला दिया गया था। उसे देखकर उसकी नाक पर दो रेखाएँ उभर आई, पर वह चुपचाप काम में मग्न रहा। सिरचन अपने काम के प्रति ईमानदार था, जो एक कुशल कारीगर की निशानी है। कहानी के इन सभी प्रसंगों से ऐसा प्रतीत होता है कि सिरचन अपने काम को ज्यादा तरजीह देता था।

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