भारतमाता
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ?
उत्तर- प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में प्रसिद्ध सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविता में वे भारतमाता को सौन्दर्य या रोमानी रूप में नहीं देखते हैं । यहाँ प्रथम अनुच्छेद में ये भारतमाता का चित्र इस प्रकार से प्रस्तुत करते हैं । वे कहते हैं कि भारतमाता गाँवों में वास करती है । उसके खेतों में सांवली धूल भरी है और आंचल मैला है । गंगा – यमुना में बहती जलधारा उसकी आँखों से निकलते आंसू जल है । उसकी मिट्टी की प्रतिमा उदास है ।
प्रश्न 2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर – पंत कहते हैं कि इस समय भारत गुलामी की जंजीर से जकड़ा हुआ है । सारा देश आजादी के लिए लोग त्राहिमाम कर रहे हैं । इस प्रकार से भारत माता यहाँ उदास नजर आती है । भारतमाता के चेहरे पर प्रसन्नता नहीं है । भारतमाता के चेहरे पर गरीबी साफ पढ़ी जा सकती है । उसकी नींद खो चुकी है । चेहरा भी झुका हुआ है । उसके होठों पर स्थायी रूप से चुप्पी है । युगों के अंधकार से , अज्ञानता से पिछड़ेपन से उसका मन उखड़ चुका है । वह अपने ही घर में प्रवासिनी की तरह हो गई है ।
प्रश्न 3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
उत्तर- पंतजी ने भारतवासियों का चित्र कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया कि भारतमाता की तीस करोड़ संतानों के तन पर वस्त्र नहीं है । वे नंगे हैं । उसकी भूख नहीं मिटती । वे शोषित है । यह जनता निरूपाय है । यह अपनी स्थिति में बदलाव का कोई उपाय नहीं कर सकती । यह मूढ़ , असभ्य , अशिक्षित , गरीब है । तरू – मल निवासिनी भारतमाता का मस्तक इस कारण से झुका हुआ है ।
प्रश्न 4. भारतमाता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर- एक समय में भारत सोने की चिड़ियों वाला देश कहलाता था । यहाँ सभ्यता दूर – दूर तक फैली थी । भारत एक सुखी सम्पन्न देश हुआ करता था । परन्तु आज पैरों के नीचे कुठित है । इसका मन धरती की तरह सहिष्णु था , सब कुछ स्वीकार लेने वाला , पर आज यह कुठित हो चुका है । यह देश आज प्रसन्न नहीं है । उसके होठों पर रोने के बाद अब मौन विखड़ा है । शरद की चंद्रमा की तरह हँसनेवाली को राहु ने ग्रस लिया है ।
प्रश्न 5. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है |
उत्तर- गीता के द्वारा ज्ञान का प्रकाश देनेवाली भारतमाता आज मूढ़ता के वश में है । भारतमाता के भौंहों पर चिंता बसी हुई है , क्षितिज अंधकारमय है । कोई रास्ता नहीं सूझता है । आँखें झुकी हुई है और आकाश कुहरे से ढुंका है । इसके चेहरे की उपमा चंद्रमा से दी जाती थी । किन्तु आज खुद भारतमाता अज्ञानी के रूप में खड़ी है ।
प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप – संयम क्यों सफल है ?
उत्तर- कवि पंतजी की दृष्टि में आज भारतमाता का तप संयम इसलिए सफल है क्योंकि भारतमाता को इस दशा से मुक्त कराने का उद्यम गाँधीजी ने किया । उनकी तपस्या और संव अब सफल होता दिखता है । अहिंसा रूपी अमृत पिलाकर उन्होंने सभी को जिला दिया है । भारतमाता अब जनता के मन का भय हरती है । संसार के अंधकार और भ्रम की जो व्याप्ति उसे जगजननी दूर करेगी । यह जीवन का विकास करने वाली है ।
प्रश्न 7. व्याख्या करें –
( क ) स्वर्ण शस्य पर – पद- तल लुंठित , धरती – सा सहिष्णु मन कुंठित
( ख ) चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित , नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित
उत्तर- ( क ) गुलामी के पहले भारत सोने की चिड़िया कहलाता था । यहाँ विभिन्न घ के लोग आपस में मिलकर रहते थे । यहाँ की खेतों में सांबली धूप एवं गंगा यमुना की पि धारा बहती थी । परन्तु आज भारतमाता के पैरों तले कुठित है । इसका मन धरती की तरह सहिष्ण था , सब कुछ स्वीकार कर लेनेवाला पर आज यह कुठित हो चुका है ।
( ख ) प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहना चाहते हैं कि भारतमाता के भौंहों पर चिन्ता बसी हु क्षितिज आज अंधकारमय हो गया है । गुलामी में जकड़े भारतमाता को कोई रास्ता नहीं दिख पड़ रहा है । आँखें गुलामी को स्वीकार कर झुकी हुई है और आकाश में इसके कुहरे फैले जो सबों को प्रभावित कर रहे हैं ।